फेसबुक आदि पर ये कविता पिछले कई दिनों लगातार शेयर होती रही है, लेकिन इसे लिखनेवाले की कोई पुख्ता पहचान नहीं मिली हालांकि सुधा शुक्ला जी ने ये कविता १९९८ में लिखी थी ऐसा कई जगह उन्होंने कहा है... खैर, जिसने भी लिखी हो इसे अपने ब्लॉग पर अज्ञात नाम से सहेज रहा हूँ... इस कविता की पंक्तियाँ अच्छी लगीं क्यूंकि सही मायने में, मैं भी कथित मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि से सहमत नहीं हूँ ....
************************************************************************
गर्भवती माँ ने बेटी से पूछा
बेटी बोली भाई
किसके जैसा? बाप ने लडियाया
रावण सा, बेटी ने जवाब दिया
क्या बकती है? पिता ने धमकाया
माँ ने घूरा, गाली देती है !
बेटी बोली, क्यूँ माँ?
बहन के अपमान पर राज्य
वंश और प्राण लुटा देने वाला,
शत्रु स्त्री को हरने के बाद भी
स्पर्श न करने वाला,
रावण जैसा भाई ही तो
हर लड़की को चाहिए आज,
छाया जैसी साथ निबाहने वाली
गर्भवती निर्दोष पत्नी को त्यागने वाले
मर्यादा पुरषोत्तम सा भाई
लेकर क्या करुँगी मैं?
और माँ
अग्नि परीक्षा, चौदह बरस वनवास और
अपहरण से लांछित बहु की क़तर आहें
तुम कब तक सुनोगी
और कब तक राम को ही जनोगी,
माँ सिसक रही थी - पिता अवाक था.
-------अज्ञात