न फूलों से रगबत है न काँटों से रंजिश
ताबीर बाग़ की थी, बस बाग़ बना लिया हमने...
शिकस्ता से कुछ ख्वाब मेरे तकिये के नीचे पड़े थे,
फिर अगली रात उसे आँखों में सजा लिया हमने
फ़रागत में बैठेंगे तो सेकेंगे कुछ लम्हें मोहब्बत के
आज तो जल्दबाजी में सब कुछ जला दिया हमने...
आईने में जो दिखे वो मानूस सा लगता है
वरना तो खुद के चेहरे को कबका भुला दिया हमने...