
अजीब बात है न, हम ये तारीख ही तय नहीं कर पाते कि हमें प्यार हुआ कब था... अब प्यार कोई बाइनरि फ्लैग थोड़े न है, जो एक और सिफ़र के बीच ही सिमट जाये....
प्यार के इस analog सिग्नल को कितना भी ग्राफ में उतार लो पता कभी नहीं चलेगा कि आखिर किस Dimension पर दिल हाथ से निकल गया...
सुबह दफ्तर जाने की हड़बड़ी है और नींद ने भी आंखो में दस्तक दे दी है... बस एक इश्क़ का बटन ही है जो बंद होने का नाम नहीं ले रहा, उसपर ये बंगलौर का कातिल आशिक़ाना मौसम....
मैंने तुम्हारे लिए बहुत कुछ लिखा है, आगे भी लिखूंगा लेकिन क्यूँ न आज अपनी खामोशीयों को कुछ कहने दें.... आखिर उन लंबे सुहाने रास्तों पर टहलते हुये कई बार हमारी खामोशियों ने
भी बहुत कुछ कहा है एक दूसरे से.... प्यार के इस analog सिग्नल को कितना भी ग्राफ में उतार लो पता कभी नहीं चलेगा कि आखिर किस Dimension पर दिल हाथ से निकल गया...
सुबह दफ्तर जाने की हड़बड़ी है और नींद ने भी आंखो में दस्तक दे दी है... बस एक इश्क़ का बटन ही है जो बंद होने का नाम नहीं ले रहा, उसपर ये बंगलौर का कातिल आशिक़ाना मौसम....
मैंने तुम्हारे लिए बहुत कुछ लिखा है, आगे भी लिखूंगा लेकिन क्यूँ न आज अपनी खामोशीयों को कुछ कहने दें.... आखिर उन लंबे सुहाने रास्तों पर टहलते हुये कई बार हमारी खामोशियों ने