दो दिन जो समानांतर हैं,
आपस में कभी मिल नहीं सकते,
लेकिन दिखते नहीं है ऐसे,
टेढ़ी-मेढ़ी सरंचनाएँ हैं इनकी,
मैं मिलता हूँ दोनों से
अलग अलग वक़्त पर...
सब कुछ वही रहता है,
लेकिन मैं वो नहीं हूँ
जो मैं था आज के पहले
मैं बदलता रहता हूँ
गिरगिट के रंग की तरह...
फिर भी मुझे शंका होती है
मैं वही हूँ या
बदल जाता हूँ हर बार,
एक पूरा दिन
अकेला बिता लेने के बाद,
पता नहीं मैं हूँ या नहीं हूँ,
लेकिन जब था तब नहीं था....
आपस में कभी मिल नहीं सकते,
लेकिन दिखते नहीं है ऐसे,
टेढ़ी-मेढ़ी सरंचनाएँ हैं इनकी,
मैं मिलता हूँ दोनों से
अलग अलग वक़्त पर...
सब कुछ वही रहता है,
लेकिन मैं वो नहीं हूँ
जो मैं था आज के पहले
मैं बदलता रहता हूँ
गिरगिट के रंग की तरह...
फिर भी मुझे शंका होती है
मैं वही हूँ या
बदल जाता हूँ हर बार,
एक पूरा दिन
अकेला बिता लेने के बाद,
पता नहीं मैं हूँ या नहीं हूँ,
लेकिन जब था तब नहीं था....