शहर परेशान सा है, और मन्नु को बार बार नीरू की फ़िक्र हो रही है, वो ठीक तो होगी ना, अपना ख़याल तो रख रही होगी ना... उसे अपना ख़याल रखना आता भी तो नहीं था... वो बार बार मोबाइल उठाता है, सोचता है एक कॉल कर ले लेकिन बस उसका लास्ट सीन देखकर फ़ोन रख देता है... मन्नु जिसने कभी भगवान से ज़्यादा कुछ माँगा नहीं वो बस आज कल नीरू की सलामती माँगता है... जानता है वक्त अब पीछे नहीं जाएगा, कभी भी नहीं...
बैक्ग्राउंड में जज़्बा फ़िल्म का वो डायलोग चल रहा है...
"तुमने जाने दिया..."
"मोहब्बत थी इसलिए जाने दिए, ज़िद होती तो बाहों में होती...."
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“मुबारक हो, शादी की तारीख़ पक्की हो गयी...
“हाँ....”
“अच्छा ये बीमारी जो फैली है उसके कारण कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगा...”
“पता नहीं, ना हो तो अच्छा है... वरना...”
“वरना क्या...”
“वरना ना, हम भाग के शादी कर लेंगे, कितना यूनीक होगा ना...”
“हाहा, हाँ....”
“अख़बार की लाइन बनेगी, करोना से परेशान लड़के लड़की ने भाग के शादी की...”
“हाहा, अरेंज्ड मैरिज में ऐसा कौन किया होगा भला....”
“सच में..”
“लेकिन अगर सच में तारीख़ आगे बढ़ गयी तो...”
“पता नहीं, लेकिन तुमसे अब दूर रहना मुश्किल है बहुत....”
“सच्ची.....”
“मुच्ची...”
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मोहब्बत पर कई सारी फ़िल्में बनी हैं और बनती रहेंगी...
2004 में एक फ़िल्म आयी थी रेनकोट, उस वक्त शायद वो फ़िल्म उतनी अच्छी नहीं लगी थी या कहूँ समझ ही नहीं आयी...
आज गुजरे वक्त के साथ लगता है प्यार पर इससे बेहतरीन फ़िल्म नहीं बन सकती.... धीमी चलती है फ़िल्म लेकिन जिस तरह अजय देवगन और ऐश्वर्या के किरदार खुद अपनी ज़िंदगी में तकलीफ़ में होते हुए भी एक दूसरे के सामने खुद को अच्छा बतलाते हैं और जाते-जाते एक दूसरे की मदद किए जाते हैं, यही तो है प्यार...
प्यार के लिए साथ होना ज़रूरी है लेकिन अगर साथ ना भी हों तो एक दूसरे की फ़िक्र में जब मन बरबस पलट के एक दूसरे की तरफ़ देखता है तो वक्त उसी समय थम जाता है...