अभी कुछ दिन पहले अजित जी से बात हो रही थी... अभी जब Listen...Amaya के बारे में लिखा था तो मेरे ख्याल से पोस्ट पसंद आने के साथ-साथ उन्हें ये भी लगा कि मैं फिल्मों का चट्टन हूँ... (रश्मि दी की पोस्ट का शब्द अच्छा लगा तो उठा लिया...) सो उन्होंने भी लगे हाथों दो-तीन फिल्में देखने की सलाह दे डाली... बाकी सब तो हमारी देखी हुयी थीं लेकिन एक इंग्लिश फिल्म का भी नाम बताया... Hachiko A Dog's Story.... हमने तो नाम भी नहीं सुना था लेकिन थोडा अलग और अच्छा सा नाम लगा तो फ़ौरन डाउनलोड पर लगा दी... सामने तीन दिन का वीकेंड भी था... कुछ ख़ास काम नहीं था, वक़्त ही वक़्त था तो पूरा मूड बना हुआ था...
ये है Hachiko.... सन 1930 के आस पास की असली तस्वीर... |
खैर चलिए अब आते है फिल्म के प्लाट पर, अगर आप केवल हिंदी पिक्चरें देख कर खुश हो जाने वालों में से हैं तब तो ऐसी फिल्म के बारे में आप सोच भी नहीं सकते... आपने जैकी श्रॉफ वाली तेरी मेहरबानियाँ ज़रूर देखी होगी लेकिन ये फिल्म उससे कहीं आगे की बात करती है... ये कहानी है, नहीं-नहीं कहानी नहीं ये तो एक सच्ची दास्ताँ है.. दास्ताँ है एक जापानी कुत्ते की... सन 1924 की सच्ची दास्ताँ... फिल्म शुरू होती है बच्चों के एक क्लासरूम से, जहां एक टीचर बच्चों को अपने अपने हीरो के बारे में एक छोटा सा essay बोलने को कह रही है, एक ८-९ साल का बच्चा आकर कहता है मेरा हीरो मेरे दादाजी का कुत्ता है "Hachiko..." सारे बच्चे हंस पड़ते हैं लेकिन वो अपनी कहानी ज़ारी रखता है... जी हाँ दरअसल Hachiko उस कुत्ते का नाम है... वो बताता है किस तरह उसके दादाजी को वो कुत्ता मिला या फिर ये कहें कि Hachiko ने उन्हें ढूँढ लिया... उस बच्चे के दादाजी संगीत के एक प्रोफ़ेसर थे जो हर रोज ट्रेन से दूसरे शहर जाते थे क्लास लेने... वहीँ से लौटते हुए उनकी नज़र पड़ी Hachiko पर जो ठीक उनके सामने आकर खड़ा हो गया... उनका भी उसपर दिल आ गया और उन्होंने उसे पाल लिया... Hachiko प्रोफ़ेसर के बिना एक मिनट भी रहना पसंद नहीं करता था, सुबह जब प्रोफ़ेसर ट्रेन पकड़ने जाते तो लाख मना करने के बावजूद वो उनके पीछे-पीछे आता और शाम में भी ट्रेन की सीटी की आवाज़ सुनते ही भाग के घर से आकर स्टेशन के बाहर खड़ा हो जाता... ये सिलसिला यूँ ही चलता रहता, हर रोज़ बिना रुके... वैसे प्रोफ़ेसर ने Hachiko को ट्रेन करने की भी कोशिश की मसलन कि अगर वो गेंद फेकें तो वो दौड़ कर जाए और उठा कर लाकर दे, जैसा अमूमन सारे कुत्ते करते हैं.. लेकिन वो ऐसा कभी नहीं करता...
बात उस दिन की है जब Hachiko प्रोफ़ेसर को स्टेशन छोड़ने जाने को तैयार नहीं हुआ... भौंक-भौंक कर कुछ कहता रहा जैसे... लेकिन प्रोफ़ेसर को कुछ समझ नहीं आया, वो उसे छोड़कर ही स्टेशन को निकल लिए... थोड़ी देर बाद देखा तो वो पीछे पीछे दौड़ा चला आ रहा है... उसने मुँह में गेंद दबा रखी थी... प्रोफ़ेसर हैरान, आज इसे क्या हुआ... उन्होंने उससे गेंद लेकर दूर फेक दिया, वो दौड़ कर गया और उठा कर ले आया... उन्होंने फिर फेका, उसने फिर लाकर दे दी... थोड़ी देर उसके साथ खेलकर प्रोफ़ेसर अपने काम को निकल लिए... Hachiko अब भी खुश नहीं था, वो भौंकता रहा...
अरे मैं तो भूल ही गया था कि किसी भी समीक्षा में पूरी कहानी नहीं लिखते.. तो फिल्म में आगे क्या हुआ ये तो मुझे नहीं पता, आप फिल्म देखें आपको पता चल जाएगा... अगर आप अच्छी फिल्मों के शौक़ीन हैं तो याद रखिये ये फिल्म देखिएगा ज़रूर... मैं आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करूंगा... इस पोस्ट की नहीं बल्कि इस फिल्म की...
आपकी सुविधा के लिए फिल्म नीचे ही जोड़ दी है यहाँ भी देख सकते हैं और चाहें तो यू ट्यूब पर से डाउनलोड भी कर सकते हैं...
चलते चलते...
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मुज़फ्फरनगर का हाल आपमें से किसी से छुपा नहीं है, किसने किया, दोष किसका है इस लफड़े में नहीं पड़ना चाहता... हाँ एक अपील ज़रूर है अगर आप भी "कुत्ते" शब्द को एक गाली की तरह इस्तमाल करते हैं तो मत कीजिये... यकीन मानिए वो हमसे बेहतर हैं और प्यार और ज़िन्दगी हमें इन बेजुबानों से ही सीखने की ज़रुरत है... चलिए बाकी बातें आपके ये फिल्म देखने के बाद...