आज जिउतिया (जीवित पुत्रिका व्रत) है.... बड़ा अजीब त्योहार है जी... जब छोटा था तब शायद अच्छा लगता होगा, लेकिन अब ये सोच कर अजीब लगता है कि क्यूँ आखिर मेरी सलामती के लिए मेरी माँ उपवास करे... श्रद्धा या विश्वास का पता नहीं क्यूँ, लेकिन माँ से पूछने पर तो यही कहती हैं कि हमेशा से करते आए हैं, तो अब छोडने का क्या मतलब है...
कल जब उन्होने आज के बारे में बताने के लिए फोन किया था तो ऐसे उत्साह से बातें कर रही थीं जैसे आज पहली बार व्रत रखा हो... पता नहीं कहाँ से उनमे इतनी ऊर्जा आ जाती है ऐसे मौकों पर...
बड़े शहरों में
अपने घर से दूर बसे लोग,
अक्सर ढूंढते हैं
अपनी माँ के हाथों की रोटियाँ
उन्हें नहीं अच्छा लगता
कहीं और का बना खाना...
फिर अगले पल उन्हें खयाल आता है
कि इन्हीं बाहर बनी
रोटियों को कमाने की खातिर
वो अपना घर छोड़ आए हैं....
जब दिन भर की भागदौड़ के बाद
तमाम थकान से
चकनाचूर होकर भी,
रात को नींद नहीं आती
उन महंगे गद्दों पर
तब उन्हें फिर ये खयाल आता है
इन गद्दों की ही खातिर तो
वो माँ की गोद छोड़ आए हैं....