क्या करूँ, लिख दूं रोमांटिक सा कुछ !!! जबकि ये भी पता है कि तुम्हें भी
उतनी ही बेसब्री से इंतज़ार रहता है... इंतज़ार किसी ऐसे लफ्ज़ का जो तार छेड़
जाए तुम्हारे दिल का... जानती हो इन दिनों एक सपना फिर देखने लगी हैं आखें... क्या कहूं, जाने दो.. इतना दिलनशीं सपना कागज़ पर उतारने का दिल नहीं कर रहा... किसी धुली हुए फ्रेश सी सुबह में मेरी आँखों में झाँक लेना... दिख जाएगा झांकता हुआ, वैसे उस ख्वाब को भी देखनी है तुम्हारी शक्ल, कमबख्त धुंधला दिखाता है तुम्हें...
ये रात है, सुबह है या फिर शाम... पता नहीं क्या है, जो भी है कुछ तो होगा ही... ज़िन्दगी के कई किनारों पे आकर खो सा जाता हूँ.... पर कितना भी उलझा रहूँ इन लहरों के बहाव में, तुम्हारे क़दमों के निशां मेरी ज़िन्दगी पे साफ़ दिखते हैं... तुमने तो मेरी ज़िन्दगी में रंग ही रंग बिखेर कर रख दिए... और मैं जाहिल, समेट ही नहीं पा रहा... सारी रंगीनियाँ देखता रहता हूँ... एक-टक... एक एहसान करोगी मुझपर ?? मैं ग़र कहीं भटक गया तुम्हें ढूँढ़ते-ढूँढ़ते तो मुझे बस इतना याद दिला देना कि ये रंग ही मेरी ज़िन्दगी हुआ करते थे कभी...
कभी सोचा नहीं था कि मेरी एक गुज़ारिश का लिहाफ़ तुमपर इतना फबेगा... मेरी ज़िन्दगी के पन्नों पर तुम्हारे क़दमों की चहलकदमी ने इसे इसे एक स्वप्न बाग़ सरीखा बना दिया है, जहाँ चारो तरफ गुलाबी-नीले-पीले फूलों की खुशबुएं तैरती रहती हैं... तुम्हारे साथ बीती हर शाम ज़िन्दगी में खुशनुमा एहसास के मोती पिरोती जा रही है... देखते ही देखते कितना वक़्त साथ गुज़र गया, बीती बातें किसी ख्वाब की तरह लगती हैं, एक खूबसूरत सा ख्वाब जिसे हमदोनों ने साथ साथ जीया है...
कभी सोचा नहीं था कि मेरी एक गुज़ारिश का लिहाफ़ तुमपर इतना फबेगा... मेरी ज़िन्दगी के पन्नों पर तुम्हारे क़दमों की चहलकदमी ने इसे इसे एक स्वप्न बाग़ सरीखा बना दिया है, जहाँ चारो तरफ गुलाबी-नीले-पीले फूलों की खुशबुएं तैरती रहती हैं... तुम्हारे साथ बीती हर शाम ज़िन्दगी में खुशनुमा एहसास के मोती पिरोती जा रही है... देखते ही देखते कितना वक़्त साथ गुज़र गया, बीती बातें किसी ख्वाब की तरह लगती हैं, एक खूबसूरत सा ख्वाब जिसे हमदोनों ने साथ साथ जीया है...
जब तुम मेरे पास होती ये वक़्त ठहर क्यूँ नहीं जाया करता... मैं बस तुम्हें ताउम्र देखते रहना चाहता हूँ, क्या इतनी सी ख्वाईश भी वाज़िब नहीं है... मेरी शामें आजकल खाली ही गुज़र जाती हैं, तेरी एक झलक पा लेने की चाहत करना किसी पहाड़ी मंदिर पर चढ़ने जैसा मुश्किल हो गया है...
मैं अचानक से जम्प लगा देना चाहता हूँ, उस सुबह के आँगन में जब तुम्हें अपनी बाहों में भर के फिर दो कप चाय बना लाऊंगा... तुम्हारे हाथों की लकीरों को निहारते हुए उसपर अपनी ज़िन्दगी की पटरियों को बढ़ते देखूँगा... लेकिन कमबख्त ये वक़्त की दीवार है न, जम्प ही नहीं लगाने देती... वो दिन आएगा न !!! कभी-कभी डर भी तो बहुत लगता है...
उछाल दी जो तस्वीर तुम्हारी, आसमां की तरफ,
जिद्दी थी तुम्हारी ही तरह,
वक़्त बेवक्त दिख जाती है आसमां में भी....
उछाल दी जो तस्वीर तुम्हारी, आसमां की तरफ,
जिद्दी थी तुम्हारी ही तरह,
वक़्त बेवक्त दिख जाती है आसमां में भी....