हथेलियों पर धान की कुछ
अधपकी बालियाँ उभर आई हैं,
जब पलटता हूँ उन्हें तो
वो बालियाँ अलफाज बन उतर आती हैं...
*******
एक गुलाबी सा शहर है
उसकी उल्टी-पुल्टी सड़कों पर
सपनों मे बेवजह की रेत लिखता हूँ
और उड़ा देता हूँ हर सुबह...
*******
आड़े-तिरछे खयालों में
ज़िंदगी के झरोखों से
कुछ नीली धूप आ जाती है,
उस धूप में पका देता हूँ अपने आप को....
*******
डूबते सूरज के पीछे
एक लंबी कतार देखता हूँ
ये भीड़ अगर थोड़ी जगह
मुझे भी दे तो
एक प्याला नारंगी रंग मैं भी कैद कर लूँ...
*******
कुछ-एक साल पहले
इक अनजानी सड़क के
नो-पार्किंग के बोर्ड के नीचे
अपने कुछ सपने पार्क कर दिये थे,
इसके जुर्माने में अपनी पूरी ज़िंदगी
चुका कर आया हूँ....
अधपकी बालियाँ उभर आई हैं,
जब पलटता हूँ उन्हें तो
वो बालियाँ अलफाज बन उतर आती हैं...
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एक गुलाबी सा शहर है
उसकी उल्टी-पुल्टी सड़कों पर
सपनों मे बेवजह की रेत लिखता हूँ
और उड़ा देता हूँ हर सुबह...
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आड़े-तिरछे खयालों में
ज़िंदगी के झरोखों से
कुछ नीली धूप आ जाती है,
उस धूप में पका देता हूँ अपने आप को....
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डूबते सूरज के पीछे
एक लंबी कतार देखता हूँ
ये भीड़ अगर थोड़ी जगह
मुझे भी दे तो
एक प्याला नारंगी रंग मैं भी कैद कर लूँ...
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कुछ-एक साल पहले
इक अनजानी सड़क के
नो-पार्किंग के बोर्ड के नीचे
अपने कुछ सपने पार्क कर दिये थे,
इसके जुर्माने में अपनी पूरी ज़िंदगी
चुका कर आया हूँ....