क्या तुमने सोचा है कभी
कोई ऐसा दिन
जब मैं कहानियाँ कहता हुआ
खुद कहानी बन कर रह जाऊंगा,
जब ये रेंगता हुआ वक़्त
मुझे फांक कर निगल जाएगा,
जब मेरी उन साँसो की गुल्लक से
ज़िंदगी के सिक्के बिखर रहे होंगे,
चेहरे पर बढ़ती
सफ़ेद दाढ़ियों के पीछे से
झांकेंगी कुछ ढुलकती झुर्रियां...
शरीर की बची हुयी गर्मी से
मैं ताप रहा हूंगा
कुछ बचे हुये पल...
उस क्षण में भी
मैं लिखते रहना चाहता हूँ
बस एक आखिरी कहानी,
क्यूंकी मुझे यकीन है
कि जब तक मैं लिखता रहूँगा
वो कहानियाँ मेरा होना सँजोये रखेंगी...
मैं ज़िंदा रहूँगा
और सांस लेता रहूँगा
इन्हीं कहानियों के पीछे...
कोई ऐसा दिन
जब मैं कहानियाँ कहता हुआ
खुद कहानी बन कर रह जाऊंगा,
जब ये रेंगता हुआ वक़्त
मुझे फांक कर निगल जाएगा,
जब मेरी उन साँसो की गुल्लक से
ज़िंदगी के सिक्के बिखर रहे होंगे,
चेहरे पर बढ़ती
सफ़ेद दाढ़ियों के पीछे से
झांकेंगी कुछ ढुलकती झुर्रियां...
शरीर की बची हुयी गर्मी से
मैं ताप रहा हूंगा
कुछ बचे हुये पल...
उस क्षण में भी
मैं लिखते रहना चाहता हूँ
बस एक आखिरी कहानी,
क्यूंकी मुझे यकीन है
कि जब तक मैं लिखता रहूँगा
वो कहानियाँ मेरा होना सँजोये रखेंगी...
मैं ज़िंदा रहूँगा
और सांस लेता रहूँगा
इन्हीं कहानियों के पीछे...