मिलती है तू ख़्वाबों में, हर बार बिछड़ के ऐसे
धूप के कम्बल से झांकती जैसे वो ठिठुरती सी शाम है |
ए हमदम तेरा दिल मुझे उस नुक्कड़ सा लगता है
जिसे कोई मंजिल न मिली और वही आखिरी मुक़ाम है |
मैंने लिक्खी थीं कई नज्में अपनी मोहब्बत के वास्ते,
पर उन नज़्मों पर तेरी मुस्कराहट ही मेरा सच्चा कलाम है |
परवाह नहीं मुझे ज़माने की संगदिली की जब तक
मेरे दिल की ज़मीं पर तेरी मोहब्बत का आसमान है |
लिखने बैठा हूँ इक ग़ज़ल मोहब्बत के काफ़िये में
हर पन्ने पर लिक्खा मैंने बस तेरा ही नाम है |
कितना कुछ है जो लिखा जा चुका है कई-कई बार,
इक तिरा नाम है जिसे हर बार लिखना जज़ा का काम है |
*जज़ा- पुण्य
धूप के कम्बल से झांकती जैसे वो ठिठुरती सी शाम है |
ए हमदम तेरा दिल मुझे उस नुक्कड़ सा लगता है
जिसे कोई मंजिल न मिली और वही आखिरी मुक़ाम है |
मैंने लिक्खी थीं कई नज्में अपनी मोहब्बत के वास्ते,
पर उन नज़्मों पर तेरी मुस्कराहट ही मेरा सच्चा कलाम है |
परवाह नहीं मुझे ज़माने की संगदिली की जब तक
मेरे दिल की ज़मीं पर तेरी मोहब्बत का आसमान है |
लिखने बैठा हूँ इक ग़ज़ल मोहब्बत के काफ़िये में
हर पन्ने पर लिक्खा मैंने बस तेरा ही नाम है |
कितना कुछ है जो लिखा जा चुका है कई-कई बार,
इक तिरा नाम है जिसे हर बार लिखना जज़ा का काम है |
*जज़ा- पुण्य