Wednesday, July 19, 2023

कुछ टुकड़ों का ताना-बाना...

पतझड़ का मौसम है, और पिछले कई सालों की तरह इस बार भी मेरे लफ्ज़ लाल होकर दरख्तों पर लटके पड़े हैं, जो इक बार तुम्हारे आने की आहट का संदेसा ये हवाएं ले आएं तो सारे-के-सारे हर्फ़ नज़्म बनकर तुम्हारे क़दमों से लिपट जाएँ, पर अब न ऐसा मुमकिन है और न ही मेरा ऐसा कोई ख्वाब... 

मुझे जीवन से बहुत कुछ कहना है, समझ नहीं आता किस रूप में कहूँ,  मैं उदास साउंड नहीं करना चाहता... मैं थैंकफुल होना चाहता हूँ.... मेरी ज़िन्दगी के बरामदे में सुकून से बैठना चाहता हूँ, इस बात से बेखबर हो जाना चाहता हूँ कि हवा का तेज झोंका मेरे मन के दीये को बुझा न दे... 

बीती रात विकास अचानक से बेचैन हो उठा, इतना बेचैन जैसे देवदास पारो के लिए हो उठा हो. लगा जैसे आवाज़ लगा देगा चीखकर, बेचैन उँगलियाँ मोबाइल के कीबोर्ड पर छटपटाने लगी, जैसे अब मेसेज भेज दे कि तब भेज दे. 

बार बार सोचा और आख़िरी में बस यही ख़याल आया कि दो दिल के जलने से बेहतर है एक ही दिल राख हो जाए. मेरी बातों से उसे इतना सुकून मिलता है पता नहीं लेकिन वो कहता है कि दो बिछड़े टुकड़े बस सुकून तलाश रहे हैं. 

प्रेम भी कैसे इंसान को त्याग सिखा जाता है, वो हमेशा कहता था कि वो ऐसा प्रेम कभी नहीं करेगा जिसमें उसे कुछ बलिदान करना पड़े, त्याग करना पड़े, और जब आज उसे देखता हूँ तो लगता है ऐसा कुछ भी नहीं जो उसने इस प्रेम कि ख़ातिर क़ुर्बान न कर दिया हो. जो भी अंशु ने कहा वो करता चला गया, एक बार भी पलट के शिकायत तक नहीं की, ना किसी से दुख बाँटा और न ही आंसू. आज भी बस हर मिलने वाली ख़ुशी की चादर से पुराने ज़ख़्म छिपा लिया करता है. 

अब तो भगवान से भी शिकायत नहीं करता, बस शुक्रिया अदा करता है जो भी मिला उसका.
क्या प्रेम का यही अंतिम पड़ाव है, त्याग ?
क्या ख़ुशी पा लेना प्रेम नहीं हो सकता ?

इन सवालों का जवाब जब वो मेरे से माँगता है तो मैं भी निःशब्द हो जाता हूँ, मुझे भी कहाँ पता है प्रेम.
अंदर के ग़ुबार इतने ज़्यादा भर गए हैं कि लगता है अचानक से कहीं नींद में कहानियाँ ना सुनाने लग जाऊँ. पर रात भर मेरी चपड़-चपड़ सुनने के लिए भी बहुत मोहब्बत चाहिए होगी, बिना मेरे लिखे से इश्क़ हुए बग़ैर कौन क्या सुनेगा. लगता है बिटिया जब थोड़ी बड़ी हो जाए तो शायद मेरी कहानियों के ज़रिये उसे भी मुझसे उतना ही प्यार हो जाए.
बीते जन्मदिन पर बस इतना ही सोच रहा था कि एक ज़िंदगी के अंदर हम कितने सारे जन्म जी लेते हैं. मैं अतीतजीवी तो नहीं लेकिन खूबसूरत चीजें जब धीरे धीरे अतीत बन जायेंगी तो उसे याद करना कौन सी बुरी बात है, मेरी ख़ुद की ही ज़िंदगी है. किसी और की थोड़े ही.
बहुत कुछ है नया लिखने को, लिखने का मन भी है बस एक बार कोई ये कह दे कि उसे इंतज़ार है पढ़ने का. चिन्नू सा ही मोटिवेशन चाहिए बस. उसके बिना तो मुश्किल है. 

अब तो लिखना ऐसा हो गया है कि पतझड़ के वक़्त लिखना शुरू किया था और अब जब लिखना बंद कर रहा हूँ तो बाहर तेज बारिश हो रही है... 

Sunday, July 09, 2023

आओ कुछ नया लिखें ...

कुछ नया लिखने की ख्वाइश और आग्रह के पतले से खांचे में, एक नयी सुबह हुई...  वैसे तो शब्द आजकल उतना साथ नहीं देते लेकिन इस बार मैं बवंडर लिखना चाहता हूँ, ऐसा बवंडर जिसमे वो सब पुराने मटमैली परतें उड़ जाएँ और ये सुबह खिलखिलाती सी लगे, जब तक की मेरी याददाश्त है तब से ही मुझे अपनी गोदी में छोटी सी लड़की चाहिए थी, पहले बहन के रूप में और जैसे ही ये एहसास हुआ कि वो मुमकिन नहीं तब से ही इक बेटी के रूप में, इस लम्बे इंतज़ार में मैंने बहुत कुछ पाया, बहुत कुछ खोया. एक वक़्त ऐसा लगने लगा था कि हर ख्वाब की तरह कहीं ये भी अधूरा न रह जाए... 

पर इस बार वक़्त इतना बेरहम न था, उस ख़ुशी ने दस्तक दे दी, और आज कल दिन-रात सुबह-शाम बस उसी के इर्द-गिर्द घूम रही जैसे ज़िन्दगी. 

जानता हूँ, अब मेरे लिखे में वो साहित्यिक टच नहीं रहा जिसे पढ़कर कुछ आखें चमक जाया करती थी, कुछ दिल तड़प जाया करते थे, कुछ आखें गीली हो जाया करती थीं.
इसलिए तो अब नहीं लिखता, या ये कहूँ कि नहीं लिख पाता... फिर भी... 


इक नदी आयी है मेरे आँगन में,
खिलखिलाती है तो
उसकी लहरें जैसे 
किलकारियां मारती हैं,
बिलकुल मासूम सी... 

इस नदी के किनारे पे 
बैठा मैं 
बस एक-टक निहारा करता हूँ.... 

दुनिया की सारी
कविताओं के रूठने के बाद,
मेरी खुद की एक मुकम्मल नज़्म
अब मेरे पास है.... 

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