Thursday, January 25, 2024

मैं इश्क़ लिखता हूँ, तो तेरी याद आती है...

मैं इन दिनों
सादे खत लिखता हूँ,
शब्द जैसे इस रूखी धूप में
सूख से जाते हैं...


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देखा है तुमने कभी
मार्च की हवाओं का गुलदस्ता,
भरी है कभी पिचकारी में
मेरी साँसों की नमी...
कहो तो इस नमी में भिगो के लिए आऊं
तुम्हारे लिए कई सारे छोटे-छोटे चाँद....

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मैं दोषी हूँ उन शब्दों का,
जिन्हें मैंने पेन्सिल से लिखा
और मिटा दिया
नटराज के इरेजर से...

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जब कभी कोई कहता है मुझे
"तुम इश्क़ बहुत अच्छा लिखते हो..."
मैं याद करता हूँ तुम्हारी मुस्कान
और दोहरा देता हूँ मन-ही-मन
"तुम बहुत प्यारी लगती हो मुस्कुराते हुए..."
क्या करूँ,
मैं इश्क़ लिखता हूँ तो तेरी याद आती है...

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मेरी लिखी हर नज़्म
एक कचिया है,
हर शाम की तन्हाई के खेत में
उपज आई लहलहाती फसल को जो काट देती है
हर सुबह...

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मैं ऊब जाना चाहता हूँ
इस दुनिया से हमेशा के लिए
पर ऊब नहीं पाता...
मैं डूब जाना चाहता हूँ
कहीं किसी समंदर में
पर डूब नहीं पाता...
ऐसी चाहतें
ट्यूबवेल के नीचे लगे पत्थर
पर जमी कजली है...

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मेरे सपने, मेरी ज़िन्दगी के शीशे पर तुम्हारी परछाईं का आपतन बिंदु है....

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मेरे बालों में कहीं-कहीं आई ये सफेदी एक नज़्म है जो मैंने तुम्हारे इंतज़ार में लिखी है....


Tuesday, January 02, 2024

सुकून...

लड़ाई लंबी थी, लेकिन अब वो दोनों हार चुके थे...  

शायद हताशा थी या अकेले रहने का डर, विकास ने नये रास्ते की तरफ़ रुख़ कर लिया. एक पल में जैसे सब कुछ बिखर गया था, उसे अब किसी बात पर जैसे हंसी आती ही नहीं थी, बस एक ढोंग करता गया पूरी दुनिया के सामने... एक बार फ़ोन तक नहीं किया, इतना पत्थर बन गया जैसे खुद को बचा रहा हो...  

अंशु ने नई मंज़िल चुनने से पहले कहा कि उसे बस अब सुकून चाहिए. 

विकास ने कई बार मुझसे पूछा कि ये सुकून क्या होता है. मुझे समझ नहीं आया कि मैं क्या कहूँ, शायद मुझे भी सुकून नहीं मिला सालों से. याद नहीं आता आख़िरी बार कब मिला था.  

मैंने विकास से पूछा कि ये पहली बार उसे कब लगा कि ये सबसे सुकून वाला पल है. उसने कहा जब पहली बार अंशु का इंटरव्यू निकला और उसने मुझसे आकर मेरी राय ली कि क्या वो जॉइन कर ले. जबकि उस वक़्त हमें एक दूसरे को मिले ज़्यादा अरसा भी नहीं हुआ था, मुझे लगा अचानक से मैं कब किसी का इतना अपना बन गया पता ही नहीं चला.

फिर कई बार इसी तरह की फीलिंग आई, जब वो उदास होकर बस स्टॉप पे मेरे गले लग कर रोयी थी, मुझे लगता है ऐसा अपनापन मुझे इससे पहले कभी नहीं लगा और शायद अब कभी लगेगा भी नहीं. वो वक़्त कुछ और था, वो प्यार कुछ और था...  अब बस एक खाना पूर्ति ही है कि खुश होना है. 

विकास बात करते करते कई बीती बातों का रुख़ मेरी और मोड़ देता है, मेरे पास किसी बात का जवाब नहीं होता. वो कहता है कि मरने के बाद तो मौक़ा मिलता होगा ना कुछ सवालों के जवाब भगवान से मानने का. मेरे पास इसका भी कोई जवाब नहीं, जवाब भी भला क्या हो मैं तो भगवान को ही नहीं मानता.

मैं उसे उदास देखता हूँ तो मेरा दिल बैठ जाता है, एक वक़्त था जब वो अपनी कहानियाँ हर किसी को सुनाना चाहता था, अपने प्रेम को चाँद पर लिख देना चाहता था. अब वो प्रेम लिख ही नहीं पाता, अब वो सुकून की परिभाषा खोजता है और उसे वो भी नहीं मिलता. ना सुकून, ना ही सुकून की परिभाषा.

कैसे मिलता है सुकून.
सुकून तब जब आप उदास हों
और एक कंधा मिले सर टिकाने को, 

सुकून तब जब वो उदास हो
और आपके कंधे पर सर टिका दें 

सुकून जब आपकी उदासी बिना कहे समझ ली जाए
जब आँखों के कोर नम होने से पहले
सामने वाले को एहसास हो जाए

मुझे नहीं मिला ऐसा सुकून
तुम्हारे जाने के बाद

क्या तुम्हें मिला ?

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