Thursday, April 08, 2010

तुम मुझे मिलीं....

यह कविता समर्पित है मेरी एक ख़ास दोस्त को जो जाने-अनजाने में ही कब  मेरी सबसे अच्छी दोस्त  बन गयी पता ही नहीं चला ..और हाँ सिर्फ दोस्त.....
तुम मुझे मिलीं....
निस्संग रास्ते में मित्र की तरह,
मित्रता की सरहद पर मिलाप की तरह
थकान में उतरती हुई नींद की तरह,
नींद में अपने प्राणों के स्पर्श की तरह,
तुम मुझे मिलीं....
सूखी  बंजर धरती पर बारिश की बूँद की तरह,
किसी माला में गूंथे हर-एक मोती की तरह,
घने वीरान जंगल में एक पगडण्डी की तरह,
तुम मुझे मिलीं...
कंटीली यादों के बीच कोमल पंखुरियों की तरह,
एक निराश कवि के भूले- बिसरे शब्दों की तरह....
तुम मुझे मिलीं.....
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