मैं हर शाम उतर आता हूँ
तुम्हारे आँगन में...
अपने हाथों में लिए
उस गुलमोहर के फूलों के गुच्छे को
छुपाने की पूरी कोशिश करता हूँ,
ताकि जब अचानक से तुम्हें दे दूं
तो तुम चौंक सी जाओ
और बदले में
उछाल दो
एक प्यारी सी मुस्कान मेरी तरफ...
मैं हर रात
तुम्हें अपनी गोद में सुलाता हूँ,
और तुम भी मेरा हाथ पकडे,
जैसे खो जाती हो
अपने सुहाने सपनों में...
मैं बस निहारता जाता हूँ
तुम्हारे उन
स्वप्न सजीले नैनों को...
वो आखें बस
किसी अधमुंदे ख्याल में
मुस्कुराती जाती हैं...
मैं हर सुबह तुम्हें सपनों से जगाता हूँ,
अभी अभी खिले
उन फूलों के साथ
जिनपर से अभी
ओस की बूँदें सूखी भी नहीं है...
ये प्यारी सी छोटी छोटी बूँदें,
तुम्हारी इन
आखों की तरह हैं न..
बिल्कुल निर्मल, सादादिल...
तुम्हारी आखें भी
मुझे देखकर
छन से मुस्कुरा देती हैं....
तुम्हारी मुस्कान भी
एक अजीब तोहफा है,
कहने को कुछ भी नहीं
और मानो तो मेरे जीवन भर की ख़ुशी....