मुझे इन पन्नो पर मत ढूँढना,
यहाँ तो केवल मेरे कुछ पुराने शब्द पड़े हैं
वो शब्द जो मैं अक्सर
इस्तेमाल कर किया करता था,
वो शब्द जो कभी बयान करते थे
मेरी खामोशियाँ, मेरी तन्हाईयाँ...
वो अब पुराने पड़ चुके हैं
अपना वजूद खो चुके हैं...
मुझे इन हथेलियों पर मत ढूँढना,
यहाँ तो बस
कुछ आरी-तिरछी लकीरें हैं मेरी
जिनके सहारे कभी
मेरा नसीब चला करता था
ये लकीरें अब धुंधली पड़ चुकी हैं
उनसे मेरा अब कोई जुड़ाव नहीं....
मैं तुम्हें कहीं नहीं मिलूंगा,
मैं तो कब का निकल चुका हूँ
अपने अकेलेपन को ज़मीन के किसी कोने में दबाकर,
अपनी इस उदास सी रूह को समेटकर
इस बेदिल दुनिया से बहुत दूर,
किसी निर्जन स्थान पर...
यहाँ तो केवल मेरे कुछ पुराने शब्द पड़े हैं
वो शब्द जो मैं अक्सर
इस्तेमाल कर किया करता था,
वो शब्द जो कभी बयान करते थे
मेरी खामोशियाँ, मेरी तन्हाईयाँ...
वो अब पुराने पड़ चुके हैं
अपना वजूद खो चुके हैं...
मुझे इन हथेलियों पर मत ढूँढना,
यहाँ तो बस
कुछ आरी-तिरछी लकीरें हैं मेरी
जिनके सहारे कभी
मेरा नसीब चला करता था
ये लकीरें अब धुंधली पड़ चुकी हैं
उनसे मेरा अब कोई जुड़ाव नहीं....
मैं तुम्हें कहीं नहीं मिलूंगा,
मैं तो कब का निकल चुका हूँ
अपने अकेलेपन को ज़मीन के किसी कोने में दबाकर,
अपनी इस उदास सी रूह को समेटकर
इस बेदिल दुनिया से बहुत दूर,
किसी निर्जन स्थान पर...