Monday, October 13, 2014

इस तन्हा शाम का विलोम तुम हो...

इन पेचीदा दिनों के बीच,
आजकल बिना खबर किए ही
अचानक से सूरज ढल जाता है,
नारंगी आसमां भी बेरंग पड़ा है इन दिनों...

इन पतली पगडंडी सी शामों में
जब भी छू जाती है तुम्हारी याद
मैं दूर छिटक कर खड़ा हो जाता हूँ...
क्या करूँ
तुम्हारे यहाँ न होने का एहसास
ऐसा ही है जैसे,
खुल गयी हो नींद
केवल बारह मिनट की झपकी के बाद,
इस बारह मिनट में मैं
तीन रेगिस्तान पार कर आता हूँ,
रेगिस्तान भी कमबख्त
पानी के रंग का दिखता है...

तुम्हारी याद भी एक जादू है,
उन नीले रेगिस्तानों में
मटमैले रंग के बादल चलते हैं....

इससे पहले कि इसे  पढ़ कर
तुम मुझे बावरा मान लो,
चलो इस शाम का
विलोम निकाल कर देख लेते हैं,

इस बारह मिनट की झपकी के बदले
तुम्हारी गोद में मिले सुकून की नींद
जहां बह रहे हैं
ये तीन नीले रेगिस्तान
वहाँ झील हो तुम्हारे आँखों की
और इन मटमैले बादलों के बदले
तुम्हारी उन काली ज़ुल्फों का घेरा हो...

इस तन्हा शाम का विलोम बस तुम हो...
आ जाओ कि,
ज़िंदगी फिर उसी लम्हे से शुरू करनी है
जहां तुम इसे छोड़ कर चली गयी हो...

अब ये मत कहना कि
ये नज़्म मुकम्मल नहीं,
आखिर तुम्हारे बिना कुछ भी
पूरा कहाँ हो पाया है आज तक....
Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...