Tuesday, May 05, 2015

क्रमशः...

मैं अंगारे सी धधकती
नज़्में लिखना चाहता हूँ
कि कोई छूए भी तो
हाथ झुलस जाएँ,
मेरे लफ़्ज़ों के कोयले से
आग को विशालतर कर
इस मतलबी दुनिया को
जला देना चाहता हूँ 
और बन जाना चाहता हूँ
इस ब्रह्मांड का आखिरी हिटलर...

************

इंसान किसी और के गम में
या क्षोभ में नहीं रोता,
न ही रोना कमजोरी है कोई ...
रोना तो
बस जरिया है सेल्फ-डिफेंस का,
खुद को जंजीरों में कैद करने के बजाय
दूसरों के मन में दहशत बिठा देना,
आखिर सेल्फ-डिफ़ेंस मे की गयी
हत्या भी हत्या नहीं कहलाती...


*************

इंसान का खुश होना एक झूठ है 
और खुश न होना उससे भी बड़ा झूठ,
उसका दूसरा झूठ 
हमेशा पहले झूठ से 
बड़ा होता है, 
बढ़ता रहता है झूठ का व्याज
दिन-ब-दिन,
फिर वो एक झूठ बेचकर 
दूसरा झूठ खरीदता जाता है,
और इस तरह बन जाता है
झूठ का सच्चा सौदागर...
Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...