Saturday, July 11, 2015

जाने ये सिरफिरा कहाँ तक पहुंचेगा...

जाने इस सोहबत का असर कहाँ तक पहुंचेगा,
इस बज़्म में मेरी नज़मों का सफर कहाँ तक पहुंचेगा,

गर गुमनाम हो गयी हों इन आँखों में खामोशियाँ मेरी,
तो उन लबों में उलझे एक बोसे का असर कहाँ तक पहुंचेगा,

तेरी हर ज़िद पर नींद के बुलबुले हवा मे घुल से जाते हैं,
जाने मेरी हकीकत में तेरे ख्वाबों का घर कहाँ तक पहुंचेगा,

सजदे में झुक जाता है ये दिल तेरी मोहब्बत की इबादत में,
दुआएं लेकर निकले इन परिंदों का असर कहाँ तक पहुंचेगा,

समंदर रश्क किए बैठा है अपनी गहराई का लेकिन,
उसके एक कोने में बसा ये लावारिस शहर कहाँ तक पहुंचेगा...


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