मैं खुद को आवाज़ लगता हूँ हर बार,
और मेरी आवाज़ मुझसे ही टकराकर
वापस लौट आती है,
काश कि आवाज़ आ पाती
दर्पण के परावर्तन के नियम के खिलाफ,
मेरा दिल इस दर्पण का आपतन बिन्दु है...
और मेरी आवाज़ मुझसे ही टकराकर
वापस लौट आती है,
काश कि आवाज़ आ पाती
दर्पण के परावर्तन के नियम के खिलाफ,
मेरा दिल इस दर्पण का आपतन बिन्दु है...
याद रखना अगर मैं घूमा लूँ
अपना दिल किसी थीटा कोण से,
मेरी आवाज़ की परावर्तित किरण
इकट्ठा कर लेगी दोगुना घूर्णन,
ये हर दर्पण का प्रकृतिक गुण है....
मेरा ये दिल दर्पण ही तो है तुम्हारा,
है न...
अपना दिल किसी थीटा कोण से,
मेरी आवाज़ की परावर्तित किरण
इकट्ठा कर लेगी दोगुना घूर्णन,
ये हर दर्पण का प्रकृतिक गुण है....
मेरा ये दिल दर्पण ही तो है तुम्हारा,
है न...