कोई शहर बदलता नहीं बस उसे देखने का नजरिया बदलता जाता है, पिछले दिनों जब
अपने शहर कटिहार में था तो कई सालों बाद उस शहर को उसी मासूम नज़रों से
देखा... कहते हैं न आप किसी शहर के नहीं होते वो शहर आपका हो जाता है... वो
शहर जहाँ मेरा लड़कपन आज भी उतना ही मासूम है... कुछ भी नहीं बदला था... बस
कुछ लोग लापता हो गए, कुछ उस शहर से और कुछ मेरी ज़िन्दगी से..
बीते कितने ही वक़्त से मेरे मन में कई तरह के ख्याल बिना अल्फाजों के उमड़ रहे हैं, न जाने क्यूँ वो शब्द न ही जुबान पे आ रहे हैं और न ही उँगलियों पे... ह्रदय के अन्दर भावनाओं का स्तर खतरे के निशान के करीब पहुँच चुका है... ऐसा न हो कि कभी ये आखों का बाँध तोड़कर छलक ही पड़े किसी दिन...
***
कभी-कभी
लम्बी चुप्पी, एक आदत में तब्दील हो जाती है... किसी से कुछ कहना या फिर
डायरियों के पन्नों पे अपनी तन्हाई घसीटना भी बहुत ज़रूरी हो जाता है... बीते कितने ही वक़्त से मेरे मन में कई तरह के ख्याल बिना अल्फाजों के उमड़ रहे हैं, न जाने क्यूँ वो शब्द न ही जुबान पे आ रहे हैं और न ही उँगलियों पे... ह्रदय के अन्दर भावनाओं का स्तर खतरे के निशान के करीब पहुँच चुका है... ऐसा न हो कि कभी ये आखों का बाँध तोड़कर छलक ही पड़े किसी दिन...
***
मैं खुद के लिए अजनबी हो जाना चाहता हूँ, मुझे ऐसा लगता है ऐसा कर लेने से शायद खुद के सवालों और डर से परे हो जाऊँगा... लेकिन खुद से ही खुद की पहचान छुपा लेना, खुद के अन्दर शून्य निर्माण कर लेने के सामान है... ऐसे किसी ठीहे की तलाश में छत पे खड़े आसमान को निहारता रहता हूँ....