Sunday, March 25, 2012

बस तुम्हारी और मेरी बातें...

           यूँ ही बैठे बैठे कभी तुम्हारे और अपने बारे में सोचता हूँ, तो हमारे बीच इस अचानक से ही जुड़ गए रिश्ते का ख्याल आता है, न जाने ये दुनिया क्या सोचती होगी हमारे इस समर्पण के बारे में... एक दूसरे की उदासियों को अपनी खुशियों के रंग से रंगने का शौक जो हम पाल बैठे हैं उसे आसान या उलझे हुए किसी भी शब्दों में कैद नहीं किया सकता... वो फुटपाथ पर बैठा चित्रकार भी हमारे इस शौक को अपनी तस्वीरों में उतारना चाहता है, लेकिन शायद रंगों को देखकर सोच में पड़ जाता है... प्यार का भी कोई रंग थोड़े न होता है भला... पता है सुबह सुबह एक मैना अक्सर मेरी खिड़की पर आती है, मुझे चैन से सोता हुआ देखकर चहचहाती हुयी धीरे से उड़ जाती है, मेरे होठों पर बिखरी उस मुस्कान का मतलब शायद वो समझ गयी है... मुझे यूँ सपनों में खोया देखकर मुझे पागल ही समझती होगी... काश मेरे साथ पूरी ज़िन्दगी बिताना भी उतनी ही आसानी से हो पाता जितनी आसानी से तुम यूँ बेधड़क मेरे सपनों में चले आती हो... 
            मैं तुम्हें ढेर सारी चिट्ठियाँ लिखना चाहता हूँ, जिनमे तुम्हारे साथ बिताये गए हर उस लम्हें का जिक्र हो, जो समय के साथ धीरे धीरे बहते जा रहे हैं... इतने सारे ख़त जो कभी ख़त्म न हों, जिनपर बिखरी हुयी स्याही इस बात की याद दिलाते रहे कि इनको लिखते वक़्त-बेवक्त मेरे आंसू गिरते रहे थे...
           मैं भी चुपचाप धीरे धीरे ऐसी दुनिया की तरफ बढ़ता जा रहा हूँ जहाँ मेरे साथ सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी यादें होंगी... यकीन रखना उन लम्हों के साथ जीते हुए भी मुझे तुमसे कभी कोई शिकायत नहीं होगी... उस आधी अधूरी ज़िन्दगी के खाली पड़े खांचों को तुम्हारी तस्वीरों से भर दूंगा, उन तस्वीरों से झांकती तुम्हारी वो आखें जिनमे मेरे न जाने कितने हज़ारों जन्मों की ज़िन्दगी छुपाये बैठी हो... बस ज़िन्दगी की इस बिसात पर अपनी बेबसी का हिसाब मांगता रहूँगा इस दुनिया के मालिक से...तुमसे यूँ दूर हो जाना मेरी ज़िन्दगी का आखिरी समझौता ही समझना...
              जब भी किसी खाली बस में चढूँगा अपने बगल वाली विंडो सीट को तुम्हारी यादों के लिए खाली छोड़ दिया करूंगा... बाहर चलती ठंडी हवाओं के साथ उस खिड़की से तुम्हारी आवाज़ छन छन कर आया करेगी... मुझे तब भी यही यकीन रहेगा कहीं न कहीं तुम भी विंडो वाली सीट पर बैठकर अपनी बगल वाली सीट देख रही होगी... यूँ ही खिड़की से बाहर देखते देखते अचानक से कुछ कहने के लिए अपने आस पास देखोगी और मुझे वहां न पाकर फिर से बाहर की तरफ देखने लग जाओगी... मेरे ख्यालों से होते हुए बाहर बहती हवाएं जब तुम्हारे चेहरे को हलके से छू जाएँगी, बस समझ लेना मैंने तुम्हारी बातें सुन ली हैं... जो कभी करवट बदलते बदलते तुम्हें नींद न आये तो तुम ज़रूर याद करोगी वो सफ़र जब कितने प्यार से अपनी गोद में तुम्हें सुला दिया था... ये सब याद करके बस इतना समझ लेना, एक मुसाफिर जिसे तुम कहीं बहुत पीछे छोड़ आई हो, वो आज भी उस नुक्कड़ पर हाथों में तुम्हारे सपनों की पोठ्ली और अपनी गोद का सिरहाना लिए तुम्हारी बस का इंतज़ार कर रहा होगा...
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