आस पास जब तन्हाईओं की शीतलहरी में मेरा दम घुटने लगता है, तो तुम्हारी इसी
मुस्कराहट की चादर ओढ़े मैं सांस लेता हूँ... फिर चाहे वो इस समय की तेज़ धुप
हो या फिर बारिश की ये तेज़ बौछारें... न ही मेरे पास और कोई छतरी है न ही
कोई छत... बस तुम्हारा साया ही है जो मुझे हमेशा आगे चलते रहने का हौसला
देता है....
कभी कभी तुम मुझे सपनों की किसी सोन चिरैया की तरह लगती हो, जो रह रह कर किसी अनजाने से डर में मेरी छाती में दुबक जाती है... फिर जब तुम्हारी और मेरी धड़कन आपस मिल कर वो प्यार भरा संगीत बनाती हैं तो बरबस ही मेरी आखों के कोर नम हो जाते हैं... जब तुम मेरे साथ नहीं होती, तो तुम्हारी याद को अपने मन में गुनता रहता हूँ और तुम्हारे इंतज़ार का एक एक मोती तुम्हारी याद में चुनता रहता हूँ.... यूँ ही अपने कमरे में बैठे बैठे बाहर होती इस रिमझिम सी बारिश का दीवाना होता जा रहा हूँ.... खिड़की के इस शीशे से अपने चेहरे को सटाये बाहर बारिश की इन एक एक बूंदों तो टपकते हुए देखता हूँ, इन हरी हरी पत्तियों से होते हुए वो सड़क पर रेत में कहीं खो सी जाती है, उनका वजूद ठीक उसी तरह है जैसे मेरे चेहरे पर तुम्हारे लिए प्यार.... जो कभी कभी भले ही दिखता नहीं लेकिन वो वहीँ है कहीं छिपा हुआ चुपके से.... मेरे अन्दर का भी ये भारी सा अकेलापन बूँद बूंद टपकता रहता है और कभी यूँ ही इन आखों की शिराओं से होकर बहते हुए मेरे चेहरे पर सूख जाया करता है....
कभी कभी तुम मुझे सपनों की किसी सोन चिरैया की तरह लगती हो, जो रह रह कर किसी अनजाने से डर में मेरी छाती में दुबक जाती है... फिर जब तुम्हारी और मेरी धड़कन आपस मिल कर वो प्यार भरा संगीत बनाती हैं तो बरबस ही मेरी आखों के कोर नम हो जाते हैं... जब तुम मेरे साथ नहीं होती, तो तुम्हारी याद को अपने मन में गुनता रहता हूँ और तुम्हारे इंतज़ार का एक एक मोती तुम्हारी याद में चुनता रहता हूँ.... यूँ ही अपने कमरे में बैठे बैठे बाहर होती इस रिमझिम सी बारिश का दीवाना होता जा रहा हूँ.... खिड़की के इस शीशे से अपने चेहरे को सटाये बाहर बारिश की इन एक एक बूंदों तो टपकते हुए देखता हूँ, इन हरी हरी पत्तियों से होते हुए वो सड़क पर रेत में कहीं खो सी जाती है, उनका वजूद ठीक उसी तरह है जैसे मेरे चेहरे पर तुम्हारे लिए प्यार.... जो कभी कभी भले ही दिखता नहीं लेकिन वो वहीँ है कहीं छिपा हुआ चुपके से.... मेरे अन्दर का भी ये भारी सा अकेलापन बूँद बूंद टपकता रहता है और कभी यूँ ही इन आखों की शिराओं से होकर बहते हुए मेरे चेहरे पर सूख जाया करता है....
सोचता हूँ कभी तुम्हारे लिए कोई कविता लिखूं, फिर सोचता हूँ उसमे ऐसा क्या लिखूं जो उसके छंद मुकम्मल हो जाएँ, एक तुम्हारा वजूद ही तो है जिसके आगे सारी कविताओं का रंग फीका पड़ जाता है... तुम्हें पता है कल कल्पना की उड़ान में, सपनों के जहान में, मिट्टी के घरोंदे बनाते हुए जब उँगलियाँ सन गयीं तो कविता बनते हुए दिखाई दी थी मुझे.... बड़े करीने से उस घरोंदे को बाहर धूप में डाल दिया, सोचा शायद इसी घरोंदे से हमारी ज़िन्दगी की शुरुआत होनी हो... फिर फ़ूलों से गँध चुरा कर, तितली से रँग लेकर और अहसास के समन्दर में सीपियाँ चुनी,तो भी कविता बन गयी... कल जब तुम हमारी ज़िन्दगी की किताब के पन्नों को पलटोगी तो शायद तुम्हें इस बात का इल्म हो जाएगा कि ये सारी कवितायें सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए लिखी गयी हैं... अक्सर कविताओं से बुनी हुयी ज़िन्दगी बहुत खूबसूरत होती है इसलिए तो हर सांझ के सूरज की मद्धिम सी रौशनी में तुम्हारे लिए एक कविता लिखता हूँ, इन सब कविताओं से घिरा हुआ हमारा संसार कितना प्यारा होगा न...
आस पास की इस भीड़ में एक एहसास है जो मुझे तुम्हारे साथ बिताये हुए हर उस लम्हें की याद दिलाता है जो हमेशा हमेशा के लिए मेरी ज़िन्दगी में चस्प हो गए हैं... कितने दिनों से सोच रहा हूँ आज के दिन तुम्हें क्या तोहफा देना चाहिए, कुछ समझ नहीं आने पर निराश होकर ये पोस्ट लिखने बैठा हूँ.... आज के दिन बस इतनी ही ख्वाईश कि आने वाले कई कई सालों और जन्मों तक तुम यूँ ही मेरा हमसाया बन कर चलती रहोगी... आज का दिन वाकई में बहुत ख़ास है, हम आज साथ हैं क्यूंकि आज के दिन ही तुम आई थीं इस प्यार भरी दुनिया में...
आस पास की इस भीड़ में एक एहसास है जो मुझे तुम्हारे साथ बिताये हुए हर उस लम्हें की याद दिलाता है जो हमेशा हमेशा के लिए मेरी ज़िन्दगी में चस्प हो गए हैं... कितने दिनों से सोच रहा हूँ आज के दिन तुम्हें क्या तोहफा देना चाहिए, कुछ समझ नहीं आने पर निराश होकर ये पोस्ट लिखने बैठा हूँ.... आज के दिन बस इतनी ही ख्वाईश कि आने वाले कई कई सालों और जन्मों तक तुम यूँ ही मेरा हमसाया बन कर चलती रहोगी... आज का दिन वाकई में बहुत ख़ास है, हम आज साथ हैं क्यूंकि आज के दिन ही तुम आई थीं इस प्यार भरी दुनिया में...