कुछ नहीं है, कुछ भी तो नहीं है...
बस अँधेरा है, छितरा हुआ,
यहाँ, वहाँ.. हर जगह...
काले कपडे में लिपटी है ये ज़िन्दगी
या फिर कोई काला पर्दा गिर गया है
किसी नाटक का...
इस काले से आसमान में
ये काला सूरज
काली ही है उसकी किरणें भी
चाँद देखा तो
वो भी काला...
जो उतरा करती थी आँगन में
अब तो वो
चांदनी भी काली हो गयी है...
उस काले आईने में
अपनी शक्ल देखी तो
आखों से आंसू भी काले ही गिर रहे थे..
डर है मुझे, कहीं इस बार
गुलमोहर के फूल भी तो
काले नहीं होंगे न....
बस अँधेरा है, छितरा हुआ,
यहाँ, वहाँ.. हर जगह...
काले कपडे में लिपटी है ये ज़िन्दगी
या फिर कोई काला पर्दा गिर गया है
किसी नाटक का...
इस काले से आसमान में
ये काला सूरज
काली ही है उसकी किरणें भी
चाँद देखा तो
वो भी काला...
जो उतरा करती थी आँगन में
अब तो वो
चांदनी भी काली हो गयी है...
उस काले आईने में
अपनी शक्ल देखी तो
आखों से आंसू भी काले ही गिर रहे थे..
डर है मुझे, कहीं इस बार
गुलमोहर के फूल भी तो
काले नहीं होंगे न....