Saturday, April 06, 2013

मैं आज मौन लिखने बैठा हूँ...

पिछले एक घंटे से न जाने कितनी पोस्ट लिखने की कोशिश करते हुए कई ड्राफ्ट बना चुका हूँ... सारे खयालात स्कैलर बनकर एक दुसरे से भिडंत कर रहे हैं... कई शब्द मुझे छोड़कर हमेशा के लिए कहीं दूर जा चुके हैं, मेरे पास चंद उल-झूलुल लफंगे अक्षरों के सिवा कुछ भी नहीं बचा है ... कई चेहरों की किताबें मुझसे मूंह फेर चुकी हैं... वो अक्सर मेरे बिहैवियर को लेकर शिकायत करते रहते हैं, ऐसे शिकायती लोग मुझे बिलकुल पसंद नहीं है, ऐसा लगता है उनकी शर्तों पर अपनी ज़िन्दगी जीने का कोई एग्रीमेंट किया हो मैंने... बार-बार अपनी कील लेकर मेरी पर्सनल लाईफ पर ठोकते रहते हैं... खैर, ऐसी वाहियात चेहरों की किताबें मैंने भी छत पर रख छोड़ी हैं, धुप-पानी लगते-लगते खुद सड़ कर ख़त्म हो जायेंगी...

लेकिन इस बेवजह के बवंडर में मेरी कलम बेबस होकर आह भरने लगी है.... आज कितने दिनों के बाद खुद के लिखे शब्दों को देखा तो खुद को जैसे कोई सजा देने का मन किया... ना जाने मैं आज कल क्या कर रहा हूँ, कुछ लिखते रहने की आदत छोड़ देना भी मेरे लिए किसी सज़ा से कम नहीं है... मैं आँख बंद कर थोड़ी देर के लिए बैठ जाता हूँ, आस-पास कुछ भी नहीं, कोई भी नहीं जो प्यार से इस सर पर एक हाथ भर फिरा दे ... कभी-कभी किसी का नहीं होना बहुत मिस करता हूँ, हालांकि यूँ अकेले रहने का निर्णय सिर्फ और सिर्फ मेरा है, क्यूंकि मुझे अपने आस-पास मुखौटे लगाए सर्कस के जोकर बिलकुल पसंद नहीं है... लेकिन उनसे बचने की जुगत करते करते ऐसे लोग भी बहुत दूर हो गए हैं जिनसे जुदा रहना मेरे ख्याल में शामिल नहीं था... 

अपने आस-पास सूखी लकड़ियों का ढेर इकठ्ठा करके आग लगा लेना चाहता हूँ, लेकिन वो भी मुमकिन नहीं, उस आग के साथ कई नाजुक डोर भी जल जायेंगी.. अगर मुमकिन हुआ तो इन्हीं रिश्तों की नाजुक डोर पकडे-पकडे ही इस दौर से निकल जाऊँगा...

आज समंदर बहुत याद आ रहा है, उसकी वो उचकती लहरें मुझे ज़िन्दगी से लड़ना सिखा जाती हैं... मैं यहाँ से कहीं दूर चला जाना चाहता हूँ, उसी समंदर के आगोश में... उसकी लहरों से लिपट जाना चाहता हूँ ... मुझे माफ़ करना ए ज़िन्दगी कि मुझे जीने का सुरूर ही नहीं आया...

मुझे पता है तुम ये पढ़ोगी तो ज़रूर सोचोगी ये क्या लिखा है, लेकिन क्या करूँ ...तुम्हारे लिए ही कुछ प्यारा सा लिखने बैठा था लेकिन पिछले दो महीने का मौन लिख बैठा हूँ...
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