Tuesday, January 14, 2014

यूं ही करवट लिए कुछ सोचता हूँ मैं....

छत पे पड़े
कुछ सूखे पत्तों के ढेर की तरह
कुछ यादों को भी
फैला देना है इस बार
बीते साल की बारिश में सील गए है...


कुरमुरे सपनों को उड़ा देने का
मज़ा ही कुछ और होता है...

******

भले ही वो सुंदर हों लेकिन,
कोई अपनी पहुँच का दायरा
आजमाता नहीं उनपर,
उस हरे रंग के कंटीले झाड के ऊपर
वो प्यारे से दिखते

लाल-लाल कैक्टस के फूल...

******

खुद से बातें करते हुये
बाहर का कुछ देखना
मुझे गंवारा नहीं होता,

दो पल सांस लेकर

मैं अपने अंदर का
शून्य पी जाना चाहता हूँ....

******

हर साल हम बिठाते हैं
कई-कई मूर्तियाँ,
हर भगवान को
हम मिट्टी में समेट लाते हैं,

फिर सोचता हूँ
कैसा हो अगर
उन मूर्तियों की तरह ही
हम कर दें अपनी बुराइयों का भी

अंतिम विसर्जन....

******

मेरे दिल के आईने को
तुम्हारी आखें किसी
अलसाई भोर की मानिंद लगती हैं,

थोड़ी करवट लो तो
इनकी तलहटी में
अपने प्यार की
लाल धूप लिख देता हूँ...

******

तुम्हारे प्यार की
सोंधी मिट्टी पर
आज लिखने बैठा हूँ
अपने दिल से अंकुरित होते
कुछ हरे हरे शब्द...
Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...