Wednesday, December 29, 2010

तुम कहाँ हो ? ? ?

एक पुरानी कविता पुरानी टिप्पणियों के साथ...
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तुम शायद भूल गए वो पल,
जब उन नन्हे हाथों से
मेरी ऊँगली पकड़कर तुमने चलना सीखा था,
अपने पहले लड़खड़ाते कदम मेरी तरफ बढ़ाये थे.....
तुम शायद भूल गए...
जब मैं तुम्हारे लिए घोडा बना करता था
तुम्हारी हर बेतुकी बातें सुना करता था,
परियों कि कहानियां सुनते सुनते
मेरी गोद में सर रख कर न जाने तुम कब सो जाते थे,
जब मेरे बाज़ार से आते ही
पापा कहकर मुझसे लिपट जाते थे,
अपने लिए ढेर सारे खिलोनों कि जिद किया करते थे.
तुम शायद भूल गए...
जब दिवाली के पटाखों से डरकर मेरी गोद में चढ़ जाया करते थे,
जब मेरे कंधे पर सवारी करने को मुझे मनाते थे,
जब दिनभर हुई बातें बतलाया करते थे...
आज जब शायद तुम बड़े हो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
आज जब मैं अकेला हूँ,
वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
लेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....

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