Tuesday, February 08, 2011

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते ---राही मासूम रज़ा

अजनबी शहर के अजनबी रास्ते , मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे
में बुहत देर तक यूँही चलता रह, तुम बहुत देर तक याद आते रहे।.

ज़हर मिलता रह ज़हर पीते रहे , रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,

ज़िंदगी भी हमे आजमाती रही , और हम भी उसे आजमाते रहे।

ज़ख्म जब भी कोई जहन
-ओ-दिल पे लगा , ज़िंदगी की तरफ एक दरीचा खुला,
हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं , चोट खाते रहे गुन-गुनाते रहे।

कल कुछ ऐसा हुआ में बहोत तक गया, इस लिए सुने के भी अनसुनी कर गया,

कितनी यादों के भटके हुआ कारवाँ , दिल के ज़ख्मों के दर खट-खटाते रहे। 

 
सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।। 


                                                                          शायर-- राही मासूम रज़ा ...

साथ में एक प्यारा सा गीत जो मुझे बहुत पसंद है आप भी सुनिए....

Do you love it? chat with me on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...