भरोसे के एक गहरे समंदर में तुमने मुझे छोड़ दिया है, मेरी बेपरवाही की आजादी कहीं खोती सी जा रही है , यूँ समझदार बने रहने की जद्दोजहद में उलझ कर रह गया हूँ, ठीक उसी तरह जैसे भँवरा कमल के अन्दर कैद हो जाता है... मेरे मन के अन्दर के आज़ाद से झरने को शांत करने की जितनी ही कोशिश कर रहा हूँ, बूंदों का शोर बढ़ता जा रहा है...
दिल अजीब सी ख़ामोशी की तरफ बढ़ता जा रहा है, यहाँ कागज के पन्नों का शोर
नहीं, यहाँ कलम की नीब के घिसटने की आवाज़ भी नहीं... शब्दों को अपनी सोच से
अलग करने की नाकाम कोशिश ज़ारी है... कुलांचें भरता हुआ ये मन अचानक से रेत
की तरह ज़र्रे ज़र्रे में बिखर जाना चाहता है... मंजिलों को पाने की परवाह
तो मैंने कब की छोड़ दी थी, लेकिन अब तो रास्ते भी बहते जा रहे हैं...

मेरे सपने रुई के फाहे की तरह हलके हो गए हैं, लाख कोशिश करूँ समेट नहीं पाता हर बार ही उनका रूख जाने-अनजाने में तुम्हारी तरफ हो जाता है... मुझे पता है मेरा बार-बार ऐसा करना तुम्हें बेवजह ही उदास कर जाता है, पर यकीन मानो अपनी इस बेचारगी और बदनसीबी से मेरा मन भी कुंठित सा हो गया है... मैं उदास नहीं, हताश भी नहीं बस थोडा थक गया हूँ, इस थकान का असर तुम्हें भी दिख ही जाता होगा मेरे चेहरे पर... जाने क्यूँ अपनी इस ब्लैक एंड व्हाईट शाम में तुम्हारी मौजूदगी के रंग भरने का शौक पाल बैठा मैं...
खैर मेरी परवाह मत करना,मेरी ज़िन्दगी की हर शाम बस यूँ ही गुजरेगी... सूरज की डूबती किरणों में ओझल हो जाएगी धीरे धीरे... लेकिन मैं जहाँ भी रहूँ, तुम्हें तोहफे में अपनी तन्हाई और तुम्हारी मुस्कान भेजा करूंगा...