भरोसे के एक गहरे समंदर में तुमने मुझे छोड़ दिया है, मेरी बेपरवाही की आजादी कहीं खोती सी जा रही है , यूँ समझदार बने रहने की जद्दोजहद में उलझ कर रह गया हूँ, ठीक उसी तरह जैसे भँवरा कमल के अन्दर कैद हो जाता है... मेरे मन के अन्दर के आज़ाद से झरने को शांत करने की जितनी ही कोशिश कर रहा हूँ, बूंदों का शोर बढ़ता जा रहा है...
दिल अजीब सी ख़ामोशी की तरफ बढ़ता जा रहा है, यहाँ कागज के पन्नों का शोर
नहीं, यहाँ कलम की नीब के घिसटने की आवाज़ भी नहीं... शब्दों को अपनी सोच से
अलग करने की नाकाम कोशिश ज़ारी है... कुलांचें भरता हुआ ये मन अचानक से रेत
की तरह ज़र्रे ज़र्रे में बिखर जाना चाहता है... मंजिलों को पाने की परवाह
तो मैंने कब की छोड़ दी थी, लेकिन अब तो रास्ते भी बहते जा रहे हैं...
हो सकता है तुम्हें ये यकीन हो कि खुद अपने आप से हो रही इस कशमकश में मैं जीत जाऊँगा, इसलिए जिस दिन भी मेरे अन्दर का ये तूफ़ान मुझे परेशान करने लगे और तुम्हारा ये यकीन टूटता दिखाई देने लगे... चुपचाप तुम्हारी ज़िन्दगी से कहीं दूर चला जाऊँगा, क्यूंकि मैं तुम्हारे इस विश्वास को हारते हुए नहीं देख सकता... तुम्हारी ज़िन्दगी को अपने शब्दों की डोर में नहीं बाँध सकता, अपनी ज़िन्दगी की किताब में से तुम्हारे हिस्से के पन्ने तुम्हें वापस लौटाना
चाहता हूँ, पर उन खाली पन्नो का क्या करूंगा जो तुम्हारे नाम हो चुके हैं
हमेशा हमेशा के लिए... उनमें मेरी खामोशियाँ कैद हो गयी हैं, मैंने ही तो
कहा था न कि ख़ामोशी भी कुछ कहती है, जाने खामोशियों में लिपटे इन पन्नों को
उनका मुकाम हासिल होगा या नहीं... हो सके तो इन पन्नो को फाड़ के फेक देना... नहीं तो इन पन्नों में कैद मेरे सपने घुट घुट के दम तोड़ देंगे... इन्हें आज़ाद कर देना... मेरी ही तरह मेरे इन सपनों का भी कोई मोल नहीं...
मेरे सपने रुई के फाहे की तरह हलके हो गए हैं, लाख कोशिश करूँ समेट नहीं पाता हर बार ही उनका रूख जाने-अनजाने में तुम्हारी तरफ हो जाता है... मुझे पता है मेरा बार-बार ऐसा करना तुम्हें बेवजह ही उदास कर जाता है, पर यकीन मानो अपनी इस बेचारगी और बदनसीबी से मेरा मन भी कुंठित सा हो गया है... मैं उदास नहीं, हताश भी नहीं बस थोडा थक गया हूँ, इस थकान का असर तुम्हें भी दिख ही जाता होगा मेरे चेहरे पर... जाने क्यूँ अपनी इस ब्लैक एंड व्हाईट शाम में तुम्हारी मौजूदगी के रंग भरने का शौक पाल बैठा मैं...
मेरे सपने रुई के फाहे की तरह हलके हो गए हैं, लाख कोशिश करूँ समेट नहीं पाता हर बार ही उनका रूख जाने-अनजाने में तुम्हारी तरफ हो जाता है... मुझे पता है मेरा बार-बार ऐसा करना तुम्हें बेवजह ही उदास कर जाता है, पर यकीन मानो अपनी इस बेचारगी और बदनसीबी से मेरा मन भी कुंठित सा हो गया है... मैं उदास नहीं, हताश भी नहीं बस थोडा थक गया हूँ, इस थकान का असर तुम्हें भी दिख ही जाता होगा मेरे चेहरे पर... जाने क्यूँ अपनी इस ब्लैक एंड व्हाईट शाम में तुम्हारी मौजूदगी के रंग भरने का शौक पाल बैठा मैं...
खैर मेरी परवाह मत करना,मेरी ज़िन्दगी की हर शाम बस यूँ ही गुजरेगी... सूरज की डूबती किरणों में ओझल हो जाएगी धीरे धीरे... लेकिन मैं जहाँ भी रहूँ, तुम्हें तोहफे में अपनी तन्हाई और तुम्हारी मुस्कान भेजा करूंगा...