Sunday, January 22, 2012

आज मदर्स डे नहीं है, फिर भी....

यही एक तस्वीर मिली जिसमे आपने मुझे पकड़ा हुआ है...
       माँ, पता नहीं क्यूँ आज आपकी बहुत याद आ रही है, मुझे पता है आपसे मिलकर भी आपसे कुछ नहीं बोलूँगा... लेकिन फिर भी बस आपको देखने का मन कर रहा है... मुझे यूँ टुकड़ों में बिखरता देखकर शायद एक बार, बस एक बार मुझे गले से लगा कर कह दो, कोई बात नहीं विक्रम.. सब ठीक हो जाएगा, मैं हूँ न... मुझे यूँ रात रात भर जागता देखकर शायद आपका दिल भी पिघल जाए, और अपनी गोद में सर रख कर मुझे सोने दो... मुझे तो याद भी नहीं आपकी गोद में सर रखकर पिछली बार कब सोया था, कभी सोया भी था या नहीं... जानता हूँ आप उन माओं की तरह नहीं जो अपने बच्चों से अपना प्यार जतलाती रहती हैं, लेकिन फिर भी... शायद मेरी उचटती नींद को मनाने के लिए एक बार, बस एक आखिरी बार मुझे फिर से उसी सुकून से सोने दो...
        मेरा बचपन तो बस यूँ देखते देखते ही गुज़र गया, याद है माँ, मैं हमेशा आपका आँचल पकड़े पकड़े चलता था, सब कहते थे मैडम इसको कब तक यूँ ही चिपका कर चलते रहिएगा... आखिर एक दिन आपने मुझसे अपना आँचल छुडवा ही लिया... मुझे आज भी याद है मैं उस दिन कितना रोया था, तब से आज तक बस रोता ही रहा हूँ... न जाने कितनी जगह वही सुकून, वही छावँ ढूँढता हूँ, लेकिन ऐसा कहीं हो सका है भला... यहाँ तो चारो तरफ बड़ी तेज धूप है, मेरा शरीर मेरी आत्मा सब कुछ झुलसी जा रही है...
      या खुदा तू इस फेसबुक से कुछ सीखता क्यूँ नहीं, देखो न ये कितने परिवर्तन लाता रहता है... और ये टाईम-लाईन  का ऑप्शन तो हमलोग को भी मिलना चाहिए... मुझे देखना है वो वक़्त जब माँ मुझे अपनी गोद में उठाए घूमती होगी, जब पापा की ऊँगली थामे मैंने चलना सीखा होगा... जब मेरे रोने की आवाज़ सुनकर सब मुझे दुलारने लगते होंगे... जब दुनिया की इन समझदारी भरी बातों से मेरा कोई वास्ता नहीं था, जब खुशियों का मतलब केवल माँ की वो मुस्कराहट थी...
       मुझे शिकायत है तुम्हारी ज़िन्दगी की इस बनावट से... इसमें बैक डोर से इंट्री का कोई ऑप्शन क्यूँ नहीं... ओ खुदा  तुमने "क्यूरियस केस ऑफ़ बेंजामिन बटन" नहीं देखी क्या ?? ऐसा ही कुछ संशोधन अपनी किताब में भी लाओ न... मैं भी यहाँ से रिवर्स में जीना चाहता हूँ... बस अब बहुत हुआ, अब और आगे नहीं जाना... मुझे फिर से माँ की वही गोद चाहिए, पापा के कंधे की सवारी और आस पास मेरा ख्याल रखने वालों की भीड़...
     
       माँ आपकी फेवरेट प्रार्थना याद है न आपको...
हम न सोचें हमें क्या मिला है,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण,
फूल खुशियों के बांटें सभी को,
सबका जीवन ही बन जाए मधुवन...
अपनी करुणा का जल तू बहाके,
कर दे पावन हर एक मन का कोना..
       ए भगवान् अगर सबको एक न एक दिन मरना ही है तो, मेरी एक आखिरी ख्वाईश कबूल कर लो न प्लीज.... माँ का आँचल पकडे ही मैं अपनी सांस की आखिरी गिरह खोलना चाहता हूँ...
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