एक जंग लगा पिंजरा, घर की चौखट से थोड़ी दूर झोपडी की छत से जुडी कड़ी में लटका हुआ है...
एक तोता है उसमे शायद, लेकिन उसका रंग बड़ा अजीब, भूरे भूरे सा...
छत के कोने में एक सुराख है, सुराख नहीं... बड़ा सा छेद... पिछली बारिश में शायद पेड़ की टहनी के गिरने से हो गया होगा...
तोता एकटक उस छेद से नीले आसमान की तरफ देख रहा है... ऐसे जैसे अभी मौका मिले तो अभी उड़ जाए...
लड़की डर जाती है, हैरान होकर तोते की तरफ देखने लगती है... शायद उसकी समझ के परे की बात होगी... वो रोने लगती है...
पानी लेकर लौटती उस औरत को दूर झोपडी से उठता धुएं का एक गुबार सा दिखता है, वो खूब जोर से चिल्लाती है... झोपडी में आग लग गयी है... वो तेज़ी से उधर की तरफ भागती है...
इधर आग की लपटें बढती जा रही हैं... छत कमज़ोर होती जा रही है, तोते का पिंजड़ा छत से गिर कर खुल जाता है, अब तोता बाहर आ गया है... लड़की अब भी रो रही है, तोता जी भर के खुले आसमान की तरफ देखता है, और उस लड़की के पास आकर खड़ा हो जाता है...
औरत भागते भागते थक कर रास्ते में बेहोश हो गयी है, झोपडी धीरे धीरे जलती जा रही है... तोता अभी भी नहीं उड़ा...
एक तोता है उसमे शायद, लेकिन उसका रंग बड़ा अजीब, भूरे भूरे सा...
छत के कोने में एक सुराख है, सुराख नहीं... बड़ा सा छेद... पिछली बारिश में शायद पेड़ की टहनी के गिरने से हो गया होगा...
तोता एकटक उस छेद से नीले आसमान की तरफ देख रहा है... ऐसे जैसे अभी मौका मिले तो अभी उड़ जाए...
नीचे कोने में एक खटिया पड़ी है, एक औरत लेटी है... औरत या फिर एक युवती,
उम्र यही कोई २७-२८ के करीब होगी... चेहरा मुरझाया सा, जैसे अपनी उम्र से
१०-१५ साल बड़ी लग रही हो... बीमार है शायद...
एक लड़की है छोटी सी ज़मीन पर खेल रही है, खेलते खेलते औरत के पास आती है, और अपनी माँ से इशारे से पानी मांगती है पीने को... औरत उठती है, लेकिन पानी का घड़ा तो खाली है...
दरवाज़े से निकलकर बाहर की तरफ देखती है तो तेज़ धूप, गर्म हवाओं के थपेड़े उसके चेहरे को जैसे झुलसा से देते हैं... अब इत्ती धूप में वो उस बच्ची को लेकर कहाँ जाए... हाथ में घड़ा उठाकर, उसे वहीँ खेलता छोड़कर... बाहर से दरवाज़े की कुण्डी लगाकर धीमे कदमो से पानी लाने शायद कहीं कुएं पर चल देती है... ज़मीन की सारी घास सूखी पड़ी है, औरत के पैर गर्म ज़मीन में तप रहे हैं...
थोड़ी देर तक लड़की के मासूम आखें अपनी माँ को खोजती हैं, फिर जैसे सब समझ जाती है... और खेलने में मगन हो जाती हैं... बाहर हवा और तेज़ हो गयी है, सूखे पत्तों के इधर उधर उड़ने की आवाज़ आ रही है... अचानक से तोता बेचैन हो जाता है... पिंजरे में इधर उधर छटपटाने लगता है... पिंजड़ा जोर-जोर से हिल रहा है... दरवाज़े से निकलकर बाहर की तरफ देखती है तो तेज़ धूप, गर्म हवाओं के थपेड़े उसके चेहरे को जैसे झुलसा से देते हैं... अब इत्ती धूप में वो उस बच्ची को लेकर कहाँ जाए... हाथ में घड़ा उठाकर, उसे वहीँ खेलता छोड़कर... बाहर से दरवाज़े की कुण्डी लगाकर धीमे कदमो से पानी लाने शायद कहीं कुएं पर चल देती है... ज़मीन की सारी घास सूखी पड़ी है, औरत के पैर गर्म ज़मीन में तप रहे हैं...
लड़की डर जाती है, हैरान होकर तोते की तरफ देखने लगती है... शायद उसकी समझ के परे की बात होगी... वो रोने लगती है...
पानी लेकर लौटती उस औरत को दूर झोपडी से उठता धुएं का एक गुबार सा दिखता है, वो खूब जोर से चिल्लाती है... झोपडी में आग लग गयी है... वो तेज़ी से उधर की तरफ भागती है...
इधर आग की लपटें बढती जा रही हैं... छत कमज़ोर होती जा रही है, तोते का पिंजड़ा छत से गिर कर खुल जाता है, अब तोता बाहर आ गया है... लड़की अब भी रो रही है, तोता जी भर के खुले आसमान की तरफ देखता है, और उस लड़की के पास आकर खड़ा हो जाता है...
औरत भागते भागते थक कर रास्ते में बेहोश हो गयी है, झोपडी धीरे धीरे जलती जा रही है... तोता अभी भी नहीं उड़ा...