Sunday, June 17, 2012

पापा, आपसे माफ़ी मांगता ही रहूँगा...

             भले ही मैं इस तरह के ख़ास दिनों में कोई यकीन नहीं रखता, मेरे लिए पापा की बातें करने के लिए कोई एक दिन काफी नहीं हो सकता... लेकिन जब आस पास सब एक दूसरे को फादर्स डे की मुबारकबाद देते नज़र आते हैं तो कुछ-न-कुछ सोचने पर मजबूर हो ही जाता हूँ... जैसे फादर्स डे कोई त्यौहार हो गया हो दीवाली की तरह, हैप्पी दिवाली कहा पटाखे फोड़े, मिठाई खायी... और अगली सुबह उन फोड़े हुए पटाखों के कचरे को झाड़ू मार कर साफ़ कर दिया... मेरे ख़याल से फादर्स डे का मतलब तो तभी सफल होगा जब हर एक संतान ज़िन्दगी भर अपने पिता के पास रहे उनके बुढापे के उन लड़खड़ाते हुए क़दमों में उनका हाथ मजबूती से थामे रहे, क्यूंकि उन्हीं हाथों को पकड़ कर हमने भी कभी अपने पहले लड़खड़ाते कदम बढ़ाये थे...
पापा, मेरे भतीजे के साथ...
" आप कभी मेरे साथ भी ऐसे ही खेलते होंगे न... :-)"
कई कई बातें जो मैं और किसी से नहीं कह पाता, आईने के सामने जाकर बयान कर देता हूँ... अक्सर ये एकालाप मुझे खूब रुलाता है... पता नहीं क्यूँ बचपन में मैं आपके उतना करीब नहीं आ पाया, शायद आपका यूँ सख्त और अनुशासनप्रिय होना मुझे हमेशा आपसे डरा कर रखता था... फिर जैसे जैसे इस दुनिया की भागदौड़ में खुद को खड़ा करने की जद्दोजहद करने लगा, इस कठिन डगर पर चलने की तैयारी करने लगा तब एहसास हुआ कि आपकी वो सख्ती, वो डांट सिर्फ और सिर्फ मेरे भले के लिए थी... आपकी सिखाई हुयी हर वो बातें जब आज ज़िन्दगी के कठिन मोड़ पर मेरा हाथ थामे रहती हैं तब मालूम पड़ता है आप कितने ख़ास हैं मेरे लिए... पापाजी... ये वो शब्द हैं जिससे मुझे हमेशा इस बात का एहसास रहता है कि इस दुनिया के संघर्ष में, इसकी पथरीली और जलन भरी सड़कों पर लड़ने के लिए मैं अकेला नहीं हूँ कोई और भी उस भगवान् के प्रतिरूप में मेरा हाथ मजबूती से थामे एक सारथी की तरह मुझे हर उस मंजिल तक पहुंचाने की कोशिश में है, जिस मंजिल के हज़ार सपने मेरी आखों ने बुने हैं... आप मेरे लिए मेरे लहू में दौड़ते हुए जीवन से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं...
            जानता हूँ आपने मेरे लिए कई सपने देखे हैं... इन सपनों में आपका कोई भी स्वार्थ नहीं था, हर उस स्वार्थ से दूर आपने पूर्ण समर्पण किया अपनी इस कीमती पौध को हरा भरा करने की... ये पौधा आज अपनी उस ज़मीन से अलग होकर बिलकुल भी खुश नहीं है... ये पैसे कमाने की भागदौड़ में आपसे दूर हो गया... ये आत्मग्लानि बढती ही जा रही है, शायद कभी ख़त्म नहीं होगी... कभी कभी सोचता हूँ मुझे पढ़ा लिखा कर आपको क्या मिला, घर में कभी न ख़त्म होने वाला सन्नाटा... अकसर मुझे आप अपने सपनों में दिखाई देते हैं, उस सन्नाटे भरे आँगन में कुर्सी पर बैठे हुए, आपकी इन बूढी आखों में जैसे एक कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार है... मन करता है सब कुछ छोड़-छाड़ कर आपके पास चला आऊं, लेकिन वो भी नहीं कर पाता... पापा, ये सपने मुझे बहुत परेशान करते रहते हैं... या तो मैं बाकी लोगों की तरह कभी प्रैक्टिकल नहीं बन पाया या फिर अन्दर से बहुत कमजोर हो गया हूँ... हालांकि आपके पास लौट आने की कोशिश जारी है लेकिन बस यही चाहता हूँ कि मैं आने वाले हर एक युग में, हर एक जन्मों में आपका ही बेटा बनूँ ताकि जो अगर कुछ आपके लिए इस जन्म में कर पाने में अक्षम हूँ आपके लिए वो हर कुछ कर सकूं...
           आपकी सख्ती के कारण आप मुझे क्रूर नज़र आते थे... इसी मुगालते के कारण आपसे कभी प्यार से अपने दिल की कोई बात नहीं कह पाया, ये भी नहीं की मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आप मेरे लिए दुनिया के सबसे बड़े आदर्श हैं...पिछली बार की ही तरह इस बार भी, पापाजी... हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजियेगा...
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