
सच कहते हैं सुख और सुकून की परिभाषा तो वही बयां कर सकता है जो प्रेम में हो... सुख तो तभी है जब तुम्हारा सर मेरे कांधे पर टिका हो और हम साथ ज़िंदगी बिताने के खयाल बुन रहे हों... तुम्हारे हाथों में हाथ डाले बैठे रहना सोंधे एहसास सरीखा है... तुमने जाते जाते मुझे जो चॉकलेट दिया था न उसे अभी तक संभाले रखा है, पता नहीं क्यूँ लेकिन कई बार उसे एकटक देखता रहता हूँ, तुम्हारे होने का एहसास दिखता है उसमे मुझे.... वैसे हम प्रेमियों के सपने भी कितने मासूम होते हैं न, साथ बिताए जाने वाले लम्हों के आलावा ज़िंदगी से और कहाँ कुछ चाहिए होता है भला.... मैं भी उन्हीं की तरह बहुत सलीके से ज़िंदगी की नब्ज़ थामे तुम्हारे साथ बढ़ना चाहता हूँ....
मैं हँसना चाहता हूँ , बिना किसी खास वजह के ही खुद से बक-बक करना चाहता
हूँ, दिल करता है खूब ज़ोर से चीखूँ-चिल्लाऊँ... खुद को इस दुनिया की भीड़
में झोंक देना चाहता हूँ, थोड़ी देर के लिए ही सही खुद को भूल जाना चाहता
हूँ... अपने चेहरे से जुड़ गए अपने वजूद, अपने नाम को अलग कर देना चाहता
हूँ... खुद के मौन से जो दूरी मैंने बना ली थी वही मौन दोबारा मुझे घेरता जा रहा है... तुम्हारी एक झलक इस मौन के काँच को तोड़कर मुझे मेरी साँसों से मिला देगी.... तुम्हारे इंतज़ार की एक पतली सी पगडंडी मेरी आँखों से निकल कर तुम्हारी तलाश कर रही है... कलेंडर की तरफ नज़र जाती है तो दिल बैठ जाता है, कैसे कटेगा ये वक़्त...