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तस्वीर leonid afremov की आर्ट गैलरी से ली गयी... |
सुबह
के ५ बजने वाले हैं, बाहर हल्की हल्की बारिश हो रही है, ठंडी हवा के झोंके खिड़की के परदे के साथ ठिठोली कर रहे हैं, और बीच बीच में रह रह कर चौकदार के डंडे की आवाज़ ... क्या खूबसूरत शायराना मौसम है, लेकिन इस संगीत के बैकस्टेज में नींद आखों से कोसों दूर है, शायद इस नींद को भी पता चल गया है कि आज तुम्हारा जन्मदिन है | तुम्हें इसकी मुबारकबाद न दे पाने की टीस ही है जो नींद को परे हटा रही है | धत, ये तुम्हारा जन्मदिन भी न, न जाने कितनी जल्दी चला आता है... और मैं पागल अब भी यही समझता हूँ कि तुम्हें मेरे फोन का इंतज़ार रहता होगा, लेकिन तुम कोई पारो थोड़े न हो जो अपने देवा की याद में दिया जलाये बैठे होगी... लोग अक्सर ये कहते हैं कि ये देवदास बनने का ज़माना नहीं रहा, हुंह वो पगले क्या जाने कोई शौक से थोड़े न किसी की याद में गुम रहता है....इसपर खुद का कोई जोर ही नहीं.... उन्हें क्या पता किसी को आवाज़ लगाते समय कितना ध्यान रखना पड़ता है कि कहीं तुम्हारा नाम न निकल जाए, आज कल किसी की शक्ल याद रखने में कितनी परेशानी होती है, कमबख्त ऐसा लगता है जैसे रेटिना पर कोई तुम्हारी ही तस्वीर चिपका गया है, तभी तो सोने के बाद सपने भी तुम्हारे ही आते हैं...
ये डायरी के अधूरे पन्ने जो यूँ ही खुद को फुसलाने के लिए लिख देता हूँ ये सोच कर कि कभी भूल से ही सही तुम इन्हें पढ़ लो... इस जनम में नहीं तो अगले जनम में ही, फिर तुम्हें ये एहसास हो एक अधूरा फ़साना आज भी तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है, जिसे तुम यूँ ही बेफिक्री से छोड़ आई थी... फिर शायद लौट आओ तुम उन सारे फटे पुराने पन्नो के साथ जिसकी स्याही पर तुम्हारे आंसुओं की छाप हो... हर लम्हा बस यही सोचता हूँ और लिखता जाता हूँ... लम्हें यूँ ही दिन में बदल जाते हैं और दिन महीनो में, फिर कलेंडर बदल जाता है... साल यूँ ही बीतते जा रहे हैं अब तो लगता है तुम्हारी यादें और मेरा ये पागलपन मेरे साथ ही ख़त्म हो जाएगा किसी दिन... प्यार करने वाले दीवाने कल भी हुआ करते थे आज भी हैं, न जाने कितने ऐसे पागल होंगे दुनिया में अब भी फर्क सिर्फ इतना है अब कोई हमारे बारे में बात नहीं करता...अब देवदास बनना फैशन में जो नहीं है.... उफ़, ये हर साल तुम्हारा जन्मदिन क्यूँ आ जाता है भला....