पिछले कुछ दिनों से लिखने से ज्यादा पढने में व्यस्त था | इसलिए कुछ लिखना संभव ना हो सका, इसलिए आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ १९९९ में लिखी मेरी एक कविता | यह कविता यहाँ पहले भी प्रकाशित हो चुकी है, लेकिन उस समय मेरा ब्लॉग शायद ही कोई पढता था | अगर आपको इसमें कोई त्रुटि लगे तो उसे ज़रूर सुधारेंगे क्यूंकि उस समय की मेरी उम्र के हिसाब से यह रचना शायद थोड़ी भारी भरकम है........
अंतहीन समंदर,
आती जाती तेज़ लहरें,
एक आशंका लिए कि,
मझधार यह कहाँ ले जाएगी,
ज़िन्दगी से लड़ते- लड़ते मौत दे जाएगी,
एक किनारे की तलाश में,
निगाहें समेटना चाहती हैं समंदर,
मायूसी की घटा है चेहरे पर,
बयां करती एक दास्तान,
दरम्यान यह ज़िन्दगी मौत का
एक पल के झरोखे में मिटा जाएगी
डूबना होगा अगर मुकद्दर मेरा,
लाख कोशिश न रंग लाएगी,
एक साहिल की तलाश में
यह ज़िन्दगी बीत
जाएगी...
क्या करूँ ? ?
मान लूं हार या करूँ संघर्ष
आखिरी क्षण तक,
क्या होगा अंजाम
यह तो तकदीर ही बताएगी......