पिछले दिनों ब्लॉग जगत पर मैंने अजीब सा माहौल देखा | एक दूसरे की निंदा करने की जैसे प्रथा चली हुई थी | ऐसा लग रहा था मानो कोई होड़ लगी हुई है कि सबसे ज्यादा विवादास्पद और नफरत से भरा लेख किसका हो | हिन्दू का ब्लॉग है तो उसपर मुसलमान की बुराई हो रही थी और किसी मुसलमान के ब्लॉग पर हिन्दुओं पर निशाना साधा जा रहा था | कई पोस्ट तो मैंने ऐसी भी पढ़ी जो किसी व्यक्ति विशेष की बुराई करने के लिए ही लिखी गयी थी | ऐसा लग ही नहीं रहा था कि ब्लॉग जगत में पढ़े लिखे और बुद्धिजीवी लोग रहते हैं | एक दूसरे के प्रति अपने मन में इतनी नफरत भर रखी थी और वो भी बिना किसी उचित कारण के | किसी को अपनी टिपण्णी प्रकाशित नहीं होने का गुस्सा था तो किसी को दूसरे की टिप्पणियाँ अच्छी नहीं लग रही थी |
चलिए इन व्यक्तिगत हमलों कि बात छोड़ भी दें लेकिन देश के खिलाफ...!!! जब से अयोध्या का फैसला आया है तब से सांप्रदायिक पोस्ट कुछ ज्यादा ही पढने को मिल रही है | धर्म के पीछे तो जैसे लोग पागल हुए जा रहे हैं |
अरे लानत है ऐसे लोगों पर जो इतने पढ़े लिखे होने के बावजूद इतनी संकरी विचारधारा से ग्रसित हैं |
लानत है ऐसे लोगों पर जिन्हें लिखने के लिए और कोई विषय नहीं मिलता | क्या इनके लिए धर्म इतना महत्वपूर्ण है कि इसके आगे वो इंसानियत के बाकी सारे धर्म भूल जाते हैं |
लानत है ऐसे लोगों पर जिन्हें इस देश में फैली हुई अशिक्षा नहीं दिखाई देती, वो भ्रष्ट नेता नहीं दिखाई देते जो दिल्ली में हुए खेलों के नाम पर ७०००० करोड़ रुपये खर्च कर देते हैं |
लानत है ऐसे लोगों पर जिन्हें ऑस्ट्रेलिया में भारतियों पर लगातार हो रहे हमले दिखाई नहीं देते, जिन्हें वो बेरोजगारी नहीं दिखाई नहीं देती जो अन्दर ही अन्दर इस देश को खायी जा रही है |
लानत है ऐसे लोगों पर जिन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं कि कसाब का जुर्म क्या है, और उसे जल्दी से जल्दी सजा मिलनी चाहिए, उन्हें तो बस उसके धर्म को लेकर साम्प्रदायिकता फैलानी है | और कई तो ऐसे समझदार मुसलमान ब्लौगर भी है जो अपनी हर पोस्ट में केवल मज़हबी जिहाद कि बातें करते हैं|
लानत है ऐसे लोगों पर जो शायद धर्म का असली मतलब ही नहीं समझते और इसके लिए आपस में लड़ने-मरने को आमादा हैं |
अरे अगर आप प्यार का सन्देश नहीं दे सकते तो कम से कम नफरत तो न फैलाएं....
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PS :- अगर आपने ये पोस्ट नहीं पढ़ी है तो कृपया टिप्पणी देने का कष्ट भी ना करें.