Wednesday, October 20, 2010

असुरक्षा पुरुषों में भी ...

               कई ब्लोग्स पर अक्सर मैंने स्त्रियों के सन्दर्भ में कवितायेँ या लेख देखे है | हाल में दिव्या जी के ब्लॉग पर पुरुषों पर एक लेख छपा था पढ़कर अच्छा लगा, और इसी बहाने मैं भी पुरुषों का एक पक्ष रख रहा हूँ....
               युगों से सृष्टि में पुरुष को शारीरिक और मानसिक रूप से शक्तिशाली माना गया है | हमारे समाज में पुरुष से शारीरिक और मानसिक रूप दोनों से प्रबल होने की अपेक्षा बहुत आरंभ से ही की जाने लगती है कि " ए तुम तो लड़के हो तुम्हें रोना शोभा नहीं देता |' छिः क्या लड़कियों कि तरह रोते हो ! "
                इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि पुरुषों में भय , विवशता, कमजोरी हताशा की भावना नहीं होती| होती है और उतनी ही होती है जितनी स्त्रियों में, यह बात अलग है कि वह इन भावनाओं से ऊपर उठना जानता है या इन भावनाओं को दबाकर अपना मजबूत हिस्सा ही समाज के सामने रखता है | हालांकि इन भावनाओं को दबाना कई मानसिक असामान्यताओं को जन्म देता है, इसलिए पुरुषों में क्रोध की भावना स्त्रियों से अधिक पायी जाती है | कोई न कोई व्यक्ति पुरुष के दायरे में ऐसा अवश्य होना चाहिए जो कि उसकी असुरक्षा को बाँट सके, या उसकी समस्या को सुन सके | माँ, पत्नी , बहन या कोई महिला मित्र यह भूमिका निभा सकती है क्यूंकि किसी पुरुष का अहम् ऐसा होता है कि वह किसी अन्य पुरुष के समक्ष अपनी कमजोरी का रोना नहीं रो सकता...
      पुरुषों की कुछ आम असुरक्षाएं इस तरह की होती हैं --
                 अस्वीकार किये जाने की असुरक्षा
पुरुष को नाकारा जाना उसके अहम् पर सबसे बड़ी चोट है | इस वजह से कई पुरुष पहल करने से डरते हैं और लम्बे समय तक एकाकी रह जाते हैं |
                 अकेले छूट जाने का दर
उन्हें सदैव परिवार की आवश्यकता महसूस होती है जो विपरीत परिस्थितियों में उसे संबल दे |
                 हारने का भय
आसानी से हार मान लेना तो पुरुष की फितरत नहीं | हमेशा जीत और कामयाबी की चाहत होती है उसे | हार का डर कई बार उसके काम पर असर डालता है |
                संबंधों में छिपे बन्धनों का भय 
बन्धनों से पुरुष सदैव कतराता है | उन्हें बेवजह टोका टोकी या दखलंदाजी पसंद नहीं होती | उनका मानना होता है  इफ यू लव सम वन सेट हिम फ्री ..
                अहम् हर पुरुष में होता है जिस पर चोट वह बर्दास्त नहीं करता या तो आक्रामक हो जाता है या टूट जाता है |
मानवीय कमजोरियां किसमे नहीं होतीं, सहारे की आवश्यकता भी हर किसी को होती है | पुरुष बस इतना चाहता है कि बिना कहे कोई उसकी आवश्यकता समझ जाए....
                 आपकी इस बारे में क्या राय है ?? क्या आप मुझसे सहमत हैं.. कृपया अपने विचार भी अवश्य दें...
               PS :-  अगर आपने यह पोस्ट नहीं पढ़ी है तो कृपया टिप्पणी देने का भी कष्ट ना करें...
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