Monday, November 01, 2010

कभी-कभी...

कभी-कभी मैं
लेकर पंछियों से पंख
नीले गगन में विचरता हूँ
यूँ ही
शायद तलाश है किसी चीज की

हाथ में एक हाथ लेकर
आसमां की खाक छानता हूँ
उसे ढूँढता हूँ जो
ज़मीं पे मिलना कठिन हो चला है,

मगर खाली हाथ लौट आता हूँ
और वो हाथ भी छूट जाता है,

फिर कभी कभी
ज़मीं पे बसी दुनिया में
करता हूँ प्रयत्न
वो करने का
जो आसमान में होता है,

तभी एक नश्तर सा चुभता है
और थक कर गिर जाता हूँ

फिर उठता हूँ और
चल पड़ता हूँ आसमां की सैर पर 

बस यूँ ही कभी कभी ||
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