आईये आपको मिलवाते हैं इस महान व्यक्तित्व से जिसने महज २५ साल की उम्र में इस देश के लिए अपनी जान दे दी |
नाम तो पढ़ ही लिया होगा आपने इनकी वर्दी पर, जी हाँ ये हैं स्व० कैप्टन विक्रम बत्रा | कारगिल युद्ध के हीरो रहे विक्रम बत्रा को उनके दोस्त उन्हें उनकी बहादुरी के कारण शेर शाह बुलाते थे | ९ सितम्बर १९७४ को हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव घुग्गर में जन्मे और १९९६ में देहरादून के इंडियन मिलिट्री अकादमी से सेना में पदार्पण किया | १९९९ में जब कारगिल में जंग शुरू हुई तो इन्हें १३ जम्मू एंड कश्मीर रायफल्स की कमान सौंपी गयी | अपने साथियों के साथ मिलकर इन्होने बहुत ही वीरता से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया, हालाँकि इस दौरान वो काफी घायल हो गए | फिर भी उन्होंने अपने साथी कैप्टेन अनुज नायर के साथ मिलकर ५ चोटियों पर कब्ज़ा जमाया | लेकिन ७ जुलाई १९९९ की सुबह अपने एक साथी लेफ्टिनेंट नवीन की जान बचाते बचाते शहीद हो गए.......
उन्होंने ले० नवीन को ये कहकर पीछे धकेल दिया " तू बाल बच्चेदार है!! हट जा पीछे, मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है |" और दुश्मनों की गोलियों ने उनके सीने को छलनी कर दिया | उनके आखिरी शब्द थे " जय माता दी....."
१५ अगस्त १९९९ को उन्हें मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र दिया गया |
नाम तो पढ़ ही लिया होगा आपने इनकी वर्दी पर, जी हाँ ये हैं स्व० कैप्टन विक्रम बत्रा | कारगिल युद्ध के हीरो रहे विक्रम बत्रा को उनके दोस्त उन्हें उनकी बहादुरी के कारण शेर शाह बुलाते थे | ९ सितम्बर १९७४ को हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गाँव घुग्गर में जन्मे और १९९६ में देहरादून के इंडियन मिलिट्री अकादमी से सेना में पदार्पण किया | १९९९ में जब कारगिल में जंग शुरू हुई तो इन्हें १३ जम्मू एंड कश्मीर रायफल्स की कमान सौंपी गयी | अपने साथियों के साथ मिलकर इन्होने बहुत ही वीरता से अपने कर्तव्य का निर्वहन किया, हालाँकि इस दौरान वो काफी घायल हो गए | फिर भी उन्होंने अपने साथी कैप्टेन अनुज नायर के साथ मिलकर ५ चोटियों पर कब्ज़ा जमाया | लेकिन ७ जुलाई १९९९ की सुबह अपने एक साथी लेफ्टिनेंट नवीन की जान बचाते बचाते शहीद हो गए.......
उन्होंने ले० नवीन को ये कहकर पीछे धकेल दिया " तू बाल बच्चेदार है!! हट जा पीछे, मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है |" और दुश्मनों की गोलियों ने उनके सीने को छलनी कर दिया | उनके आखिरी शब्द थे " जय माता दी....."
१५ अगस्त १९९९ को उन्हें मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र दिया गया |
मेरी तरफ से इस शहीद और उन तमाम शहीदों को जिन्होंने इस देश के लिए अपनी जान दे दी , शत शत नमन.....
ये लेख लिखते लिखते मन भारी भारी सा हो गया है |