Friday, November 26, 2010

सुनहरी यादें :-५

                इस बार सुनहरी यादों में शामिल है वंदना गुप्ता जी की रचना ,जो मुझे भेजी है सुमन मीत जी ने | तो इस सप्ताह की हमारी सर्वश्रेष्ठ पाठिका हैं सुमन 'मीत' | उनकी भेजी और वंदना गुप्ता जी की लिखी रचना का शीर्षक है  |  


                                                                      यूँ आवाज़ ना दिया करो

सुनो
यूँ आवाज़ ना दिया करो
दिल की बढती धड़कन
आँखों की शोखियाँ
कपोलों पर उभरती
हया की लाली
कंपकंपाते अधर
तेरे प्यार की
चुगली कर जाते हैं
कभी ख्वाब तेरे
रातों में जगा जाते हैं
और चंदा की बेबसी से
सामना करा जाते हैं
तारे गिनते- गिनते
कटती तनहा  रात 
भोर की लाली से
सहम- सहम जाती है
मद्धम मद्धम बहती बयार
तेरी साँसों की
सरगोशियाँ कर जाती है
तेरी इक आवाज़ पर
मोहब्बत का हर रंग
बसंत सा खिल जाता है
बता अब कैसे
मुट्ठी में क़ैद करूँ
इस बिखरती खुशबू को
बस तुम
यूँ आवाज़ ना दिया करो  

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                 आपकी भेजी रचना भी यहाँ प्रकाशित हो सकती है | आपको करना बस इतना है कि अपने आलावा किसी और की रचना मुझे मेल कर दें | और ये रचना कम से कम ६ महीने पुरानी होनी चाहिए.....
                 मेरा पता है :- sunhariyadein @yahoo .com 
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आईये २६/११ के हमले में शहीद हुए सिपाहियों को नमन करें...आज उन सच्चे सपूतों के कारण मुंबई सुरक्षित है |
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