आईये आपको मिलवाता हूँ एक और सिपाही से जो महज २२ साल की उम्र में इस देश के लिए शहीद हो गया |
ये हैं स्व० कैप्टन विजयंत थापर | कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले विजयंत थापर को उनके घर वाले प्यार से रॉबिन बुलाते थे | १९७७ में सैनिक परिवार में जन्मे विजयंत ने पहली गोली अपने पापा की पिस्टल से महज ४ साल की उम्र में ही चलाकर मानो ये ऐलान कर दिया था कि जल्द ही वो नया इतिहास लिखने वाले हैं | वो १९९८ में सेना में भर्ती हुए और राजपूताना रायफल्स ग्वालियर में नियुक्त हुए, सिर्फ १ महीने बाद उनकी नियुक्ति कश्मीर हो गयी |
२८ जून की रात थी, इनकी बटालियन को ३ चोटियों पर कब्ज़ा करने का भार मिला | रात के वक़्त उन चोटियों कि चढ़ाई करना बहुत ही कठिन कार्य था लेकिन इन्होने इसे बखूबी अंजाम दिया, लेकिन इस दौरान इनके कमांडर मेजर आचार्या शहीद हो गए | ये खबर सुनकर उनका गुस्सा चरम पर आ गया और अपने एक साथी नायक तिलक सिंह के साथ मिलकर सिर्फ ५० मीटर दूर गोलियां उगलती दो मशीनगनों पर धावा बोल दिया, करीब डेढ़ घंटे चली गोलीबारी के बाद उन्होंने अपने साथी से कहा कि अब वो इन्हें नहीं छोड़ेंगे, और अपने साथियों की कवर फायरिंग के बीच वो अकेले ही दुश्मन के खेमे में घुस गए लेकिन तभी एक गोली सीधे उनके माथे पर लगी और उन्हें विजय तिलक लगा दिया | उनके आखिरी शब्द थे राम |
मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया | उनके द्वारा लिखा गया आखिरी ख़त और डायरी का एक पन्ना भी दे रहा हूँ | इसे राईट क्लिक करके ओपन करें और जूम करके पढ़ें | वैसे उनके आखिरी ख़त का अनुवाद मुझे आशीष मिश्रा जी ने भेजा है वो भी लिख रहा हूँ....
प्यारे मम्मी-पापा, बर्डी और ग्रैनी,
जब तक आप लोगों को यह पत्र मिलेगा, मैं ऊपर आसमान से आप को देख रहा होऊँगा और अप्सराओं के सेवा-सत्कार का आनंद उठा रहा होऊँगा।
मुझे कोई पछतावा नहीं है कि जिन्दगी अब खत्म हो रही है, बल्कि अगर फिर से मेरा जन्म हुआ तो मैं एक बार फिर सैनिक बनना चाहूँगा और अपनी मातृभूमि के लिए मैदाने जंग में लड़ूँगा।
अगर हो सके तो आप लोग उस जगह पर जरूर आकर देखिए, जहाँ आपके बेहतर कल के लिए हमारी सेना के जाँबाजों ने दुश्मनों से लोहा लिया था।
जहाँ तक इस यूनिट का सवाल है, तो नए आने वालों को हमारे इस बलिदान की कहानियाँ सुनाई जाएँगी और मुझे उम्मीद है कि मेरा फोटो भी 'ए कॉय' कंपनी के मंदिर में करणी माता के साथ रखा होगा।
आगे जो भी दायित्व हमारे कंधों पर आएँगे, हम उन्हें पूरा करेंगे।
मेरे आने वाले धन में से कुछ भाग अनाथालय को भी दान कीजिएगा और रुखसाना को भी हर महीने 50 रु. देते रहिएगा और योगी बाबा से भी मिलिएगा।
बेस्ट ऑफ लक टू बर्डी। हमारे बहादुरों का यह बलिदान कभी भूलना मत। पापा, आपको अवश्य ही मुझ पर गर्व होगा और माँ भी मुझ पर गर्व करेंगी। मामाजी, मेरी सारी शरारतों को माफ करना। अब वक्त आ गया है कि मैं भी अपने शहीद साथियों की टोली में जा मिलूँ।
बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल।
लिव लाइफ किंग साइज।
आपका
रॉबिन
उनके बारे और भी कई जानकारी और कुछ रोचक तस्वीरों के लिए इस लिंक पर जरूर जायें..
ये हैं स्व० कैप्टन विजयंत थापर | कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले विजयंत थापर को उनके घर वाले प्यार से रॉबिन बुलाते थे | १९७७ में सैनिक परिवार में जन्मे विजयंत ने पहली गोली अपने पापा की पिस्टल से महज ४ साल की उम्र में ही चलाकर मानो ये ऐलान कर दिया था कि जल्द ही वो नया इतिहास लिखने वाले हैं | वो १९९८ में सेना में भर्ती हुए और राजपूताना रायफल्स ग्वालियर में नियुक्त हुए, सिर्फ १ महीने बाद उनकी नियुक्ति कश्मीर हो गयी |
२८ जून की रात थी, इनकी बटालियन को ३ चोटियों पर कब्ज़ा करने का भार मिला | रात के वक़्त उन चोटियों कि चढ़ाई करना बहुत ही कठिन कार्य था लेकिन इन्होने इसे बखूबी अंजाम दिया, लेकिन इस दौरान इनके कमांडर मेजर आचार्या शहीद हो गए | ये खबर सुनकर उनका गुस्सा चरम पर आ गया और अपने एक साथी नायक तिलक सिंह के साथ मिलकर सिर्फ ५० मीटर दूर गोलियां उगलती दो मशीनगनों पर धावा बोल दिया, करीब डेढ़ घंटे चली गोलीबारी के बाद उन्होंने अपने साथी से कहा कि अब वो इन्हें नहीं छोड़ेंगे, और अपने साथियों की कवर फायरिंग के बीच वो अकेले ही दुश्मन के खेमे में घुस गए लेकिन तभी एक गोली सीधे उनके माथे पर लगी और उन्हें विजय तिलक लगा दिया | उनके आखिरी शब्द थे राम |
मरणोपरांत उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया | उनके द्वारा लिखा गया आखिरी ख़त और डायरी का एक पन्ना भी दे रहा हूँ | इसे राईट क्लिक करके ओपन करें और जूम करके पढ़ें | वैसे उनके आखिरी ख़त का अनुवाद मुझे आशीष मिश्रा जी ने भेजा है वो भी लिख रहा हूँ....
प्यारे मम्मी-पापा, बर्डी और ग्रैनी,
जब तक आप लोगों को यह पत्र मिलेगा, मैं ऊपर आसमान से आप को देख रहा होऊँगा और अप्सराओं के सेवा-सत्कार का आनंद उठा रहा होऊँगा।
मुझे कोई पछतावा नहीं है कि जिन्दगी अब खत्म हो रही है, बल्कि अगर फिर से मेरा जन्म हुआ तो मैं एक बार फिर सैनिक बनना चाहूँगा और अपनी मातृभूमि के लिए मैदाने जंग में लड़ूँगा।
अगर हो सके तो आप लोग उस जगह पर जरूर आकर देखिए, जहाँ आपके बेहतर कल के लिए हमारी सेना के जाँबाजों ने दुश्मनों से लोहा लिया था।
जहाँ तक इस यूनिट का सवाल है, तो नए आने वालों को हमारे इस बलिदान की कहानियाँ सुनाई जाएँगी और मुझे उम्मीद है कि मेरा फोटो भी 'ए कॉय' कंपनी के मंदिर में करणी माता के साथ रखा होगा।
आगे जो भी दायित्व हमारे कंधों पर आएँगे, हम उन्हें पूरा करेंगे।
मेरे आने वाले धन में से कुछ भाग अनाथालय को भी दान कीजिएगा और रुखसाना को भी हर महीने 50 रु. देते रहिएगा और योगी बाबा से भी मिलिएगा।
बेस्ट ऑफ लक टू बर्डी। हमारे बहादुरों का यह बलिदान कभी भूलना मत। पापा, आपको अवश्य ही मुझ पर गर्व होगा और माँ भी मुझ पर गर्व करेंगी। मामाजी, मेरी सारी शरारतों को माफ करना। अब वक्त आ गया है कि मैं भी अपने शहीद साथियों की टोली में जा मिलूँ।
बेस्ट ऑफ लक टू यू ऑल।
लिव लाइफ किंग साइज।
आपका
रॉबिन
उनके बारे और भी कई जानकारी और कुछ रोचक तस्वीरों के लिए इस लिंक पर जरूर जायें..